Saturday, 17 December 2011

kuchh to bolo!


मैं तो सदा तुम्हारे साथ हूँ ,
तुम अपनी आँखें तो खोलो ,
कोशिश तो करो तुम
मुझे देखने की , महसूस करने की .....


हवा  जो  तुझे सहला जाती है ,
वो तेरे स्पर्श को आकुल ,
मैं ही तो हूँ ;
पक्षियों की चहक  में, व्याकुल
मैं ही तो तुझे पुकार रही हूँ ;
मैं ही तो रोज आती हूँ
तुझे देखने
आसमान में
बनकर चाँद तारे.........

तुम जिन फूलों को
मेरी चोटियों में गूँथ देते थे
मैं आज उन्ही में बस कर
तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ,
की कभी तुम इधर आओ
और मैं टूट कर तुम पर बिखर जाऊं.......

पर तुम तो खोए हो कहीं शुन्य में
सारी  दुनिया को भूल कर ;
जैसे रूठे  बैठे हो |



हाँ, तुम्हे हक़ है
मुझसे रूठने का
मुझसे शिकायत करने का
तुम चाहो तो
मुझे बेवफा कहो,
गलियां दो मुझे
नफ़रत करो मुझसे........
पर यूँ सब छोड़ कर न बैठो,
कुछ तो बोलो ! .......

वरना मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाऊंगी ,
मेरी रूह तड़पती रहेगी ,
मेरा अंतस बैचैन रहेगा |


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