Friday, 18 October 2013

आनंद और दर्द

हाँ, आज तुम बाहें पसारे
आनंद ले लो
बारिश की बूंदों में भींगने का;
कल जब तुम्हारे सर पे
छत नहीं होगी, तो पूछूँगा -
कि भीगते बिस्तर पे
कैसे मजे में गुजरी रात !

आज देख लो ये रंगीन नजारे
ये बागीचे, ये आलीशान शहर;
कल जब लौट के आने को
कोई ठिकाना नहीं होगा, तो पूछूँगा-
चलो कहाँ चलते हो घूमने !

आज तुम झंडा बुलंद कर लो
सम्पन्नता प्रचालित न्याय नीति का;
कल जब पेट में
नहीं होगा अन्न का दाना, तो पूछूँगा-
कहो कब तक उल्लुओं-कौवों को
उडाने दोगे अपना निवाला !


Wednesday, 16 October 2013

आसन्न खतरा


















अंधेरों की सनसनाहट
संगीत नही,
भयानक शोर
जो फाड़ डाले कान के परदों को -
अचानक थम जाती है ।

 …शायद कोई आसन्न ख़तरा
घुल रहा है हवाओं में ।

… के शायद कोई नाग निकल पड़े झाड़ियों से;
या और कुछ ।

… के शायद मुझे भी चुप हो जाना चाहिए ;
इस विलाप को बंद करके
सतर्क हो जाना चाहिए
उस आसन्न खतरे के प्रति।