टूटे तार
खंड-खंड स्वर
राग विखंडित
क्षिप्त रागिनी
ऐ मृदुले! जीवन के सुर-
संयोजित कर दे ।।
टूटे-फूटे छंद
भाव बिखरे-बिखरे से
रस की सरिता सूखी सी
सब शब्द अनमने
भटका हुआ कहन
कथन सब बासी-बासी
काव्य प्रवाह शून्य
जीवन पर्यन्त उदासी
सरस! सुकोमल शुद्ध भाव से
हृदय ताल भर दे ।।
लोक-जगत
सब विद्रूप अंकित
सब दिक् - मौसम
धूसर रंजित
दिवस-निशा
सब अलसाये से
दे! अब कुछ
जागृति के क्षण दे
वासंती ! इन नयनों में
सौंदर्य बोध भर दे ।।
खंड-खंड स्वर
राग विखंडित
क्षिप्त रागिनी
ऐ मृदुले! जीवन के सुर-
संयोजित कर दे ।।
टूटे-फूटे छंद
भाव बिखरे-बिखरे से
रस की सरिता सूखी सी
सब शब्द अनमने
भटका हुआ कहन
कथन सब बासी-बासी
काव्य प्रवाह शून्य
जीवन पर्यन्त उदासी
सरस! सुकोमल शुद्ध भाव से
हृदय ताल भर दे ।।
लोक-जगत
सब विद्रूप अंकित
सब दिक् - मौसम
धूसर रंजित
दिवस-निशा
सब अलसाये से
दे! अब कुछ
जागृति के क्षण दे
वासंती ! इन नयनों में
सौंदर्य बोध भर दे ।।
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