Wednesday, 2 September 2015

दिल्ली से बिछुड़ते समय

मैं नहीं चाहूँगा 
की दिल्ली मेरे रग रग में बहे 
जरूरत बनकर।

मैं चाहूँगा की जैसे 
यादों की खुसबू बनकर 
मौके बेमौके महकते हैं 
देहरादून और नागपुर। 
या फिर दोस्तों के निश्चिन्त ठहाकों की तरह
जैसे कानों में कभी कभी गूंज जाता है हैदराबाद। 
वैसे ही किसी भूले बिसरे गीत की तरह 
मेरे पल दो पल को झनकाति हुई 
गुजर जाए ये दिल्ली....

क्योंकि जरूरत और मोहोब्बत
दो अलग अलग चीज हैं 
मोहोब्बत आजादी है 
जबकि जरूरत गुलामी....