Saturday, 10 October 2015

कविता ऐसी भी क्या? किस काम की ?

तुम्हारा कवित्व सोना है -
उछालो उसे- खड़ा और चमकदार
- ताकि दुनिया गुणे ।

उसे गुदरी में क्या छिपाना
की कोई पहचान न सके
कोई डिटेक्टर लगाना पड़े -
विद्वान्-पंडित बुलाने पड़े
उसके गुण धर्म समझने के लिए।

सोना - ऐसा भी क्या?
किस काम का?