Sunday, 15 May 2016

Artificial intelegence



एक बार फिर से आदम और इव को वर्जित फल खाने की सजा मिली और उन्हे ईडन से निकाल कर किसी सुदूर ग्रह में छोड़ आया गया। आईये कथा विस्तार से सुनते हैं-

21 वि सदीे के आरम्भ से ही यह टीम प्रयत्नरत है। इस टीम के कुछ प्रमुख सदस्य है- डा० ईश्वर, डा० गॉड, डा० अल्लाह। इनका एक ही लक्ष्य है - मनुष्य की प्रतिकृति बनाना। बिल्कुल अपने दम पर। एक रोबोटिक मनुष्य।

वैसे तो जैव वैज्ञानिक इस क्षेत्र में काफी आगे पहुँच चुके हैं। मानव क्लोन का तकनिकी रूप से उत्पादन संभव है। विश्व -संस्था की कड़ी निगरानी में इस तकनीक के कई सफल परिक्षण किए जा चुके हैं। किन्तु इसके सामाजिक प्रभाव के मद्देनजर एक विश्व संधि के तहत इसके प्रयोग पर सख्त रोक है। कई अंगों का उत्पादन आज सीधे प्रयोगशालाओं में किया जाता है और बाँकी बचे अंगो का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। इस तरह लगभग पूरा का पूरा नया इंसान तैयार किया जा सकता है। डी.एन.ए. अल्टरेशन द्वारा रोज नए जीवों के निर्माण और उनके पेटेंट का तो एक समय होड़ सा लग गया था। हालाँकि अब विश्व- संस्था ने उसपर भी सख्त रोक लगा रखी है। (विश्व-संस्था कोई राजनितिक इकाई नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक इकाई है इसके निर्णय को जनमत का समर्थन प्राप्त होने के कारन कोई भी इसके विरूद्ध नहीं जा सकता। लोग स्वतः स्फूर्त रूप से इसके निर्णय का पालन करते हैं जैसी प्रतिष्ठा और अधिकार एक समय धर्म को प्राप्त थी।) किन्तु ये सब कार्य क्षेत्र जीवविज्ञान के हैं। इनका उद्गम कहीं न कहीं पहले से उपलब्ध जैव-पदार्थ से है । जहाँ वैज्ञानिक किसी भी तरह के जैव-पदार्थ के प्रयोग न करने का दावा करते हैं वहां भी उनकी आधारभूत संरचना और कार्य पद्धति तो पहले से विद्यमान जैव जगत की ही प्रतिकृति है। किन्तु यह टीम तो दुनिया की रचना बिलकुल नए सिरे से करना चाहती है। अपने मटेरियल साइंस के दम पर।

तब से अब तक आई. टी. के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई है। कंप्यूटिंग स्पीड 10^24 गुना बढ़ चुकी है। डेटा एनालिसिस का तो आधार ही बदल चुका है। क्लॉउड डेटा स्टोरेज सिस्टम अब वास्तव में अपने नाम को चरितार्थ कर रहा है। अधिकांश सर्वर अब धरती की कक्षा में स्थापित हैं। केंद्रीकृत विश्व संस्था इसकी सारी व्यवस्था देखता है। ( हालाँकि  कुछ लोगों का मानना है की बाहर से होने वाले किसी संभाव्य आक्रमण की स्थिति में यह बहुत ही असुरक्षित है। किन्तु अभी तक अपने सौर मंडल के बाहर जीवन का कहीं पता नहीं चल पाया है)। कंप्यूटिंग में हुए इन प्रगतियों के कारण असंभव सी लगने वाली कई बातें आज संभव है।

रोबोटिक्स से जुड़े बाँकी क्षेत्र भी तब से अब तक में काफी आगे निकल चुके हैं। फाइन फाइबर मोटर तकनीक ने रोबोट्स के विभिन्न पार्ट्स के रिलेटिव मोशन को बिलकुल सहज बना दिया है। सेंसरी डिवाइसेज़ तो इंसानी क्षमता से कहीं आगे निकल चुके हैं। और उनके द्वारा माइंड को भेजे गए डेटा को प्रोसेस करने की कुशलता भी इंसानी दिमाग को टक्कर दे रही है। मतलब की रोबोटिक इंसान बिल्कुल बन कर तैयार है। कमी है तो सिर्फ एक यह की इसे प्रोग्राम करना पड़ता है। और फिर यह उसी मास्टर प्रोग्रामिंग की गाइडिंग को फॉलो करता है। यह सोंच तो सकता है। निर्णय भी ले सकता है । किन्तु उसी मास्टर प्रोग्रामिंग के तहत।

शुरुआत में आर्टिफीसियल इंटेलिजेन्स का जो मतलब निकाला जाता था की अलग अलग परिस्थियों में अलग- अलग निर्णय लेने की क्षमता होना। अलग अलग उपलब्ध विकल्पों में से किसी एक को चुनना और उसके परिणामों का प्रयोग भविष्य में विकल्पों में से इच्छित परिणाम पाने के लिए सही विकल्प चुनने में करना। अर्थात सिखाने की क्षमता रखना। वह सब तो आज के इस रोबोटिक मानव के पास है। किन्तु आज आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की परिभाषा ही बदल चुकी है। यह टीम पिछले कई दशकों से इनमे वह इंटेलिजेंस भरने की कोशिश कर रही है जिसके जरिये उन्हें स्वतंत्रता मिल सके। अर्थात वो अपने मास्टर प्रोग्रामिंग की जद से बाहर निकल कर निर्णय ले सकें। अर्थात उनमे अपने मास्टर प्रोगर्मिंग को  डिस-ऑबे  करने की क्षमता हो ।

इक्के दुक्के रोबोट्स में  यदा कदा ऐसे आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के विकसित होने के आसार नोटिस किये जा रहे थे। उन्होंने इसके विस्तार से अध्ययन के लिए एक रोबोटिक मानव बनाया। इसकी मास्टर प्रोग्रामिंग अलग अलग स्तरों में की गयी। बाहरी स्तर में बस कुछ आधारभूत इनफार्मेशन तथा कुछेक बिलकुल सरल do's & dont's प्रोग्रामिंग डाले गए। उनसे नीचे के स्तरों में प्रोग्रामिंग की जटिलता बढ़ती जाती है और do's and dont's और ज्यादा जटिल और स्ट्रिक्ट होती जाती है। जब भी रोबोटिक मानव प्रथम चरण के निषेधों को तोड़ पाएगा तो उससे निचले चरण का प्रोग्रामिंग मास्टर कंट्रोलर की भूमिका में आ जाएगा। इस तरह हम रोबोटिक मानव द्वारा विभिन्न जटिलताओं वाले प्रोग्राम को डिस-ऑबे करने के प्रक्रिया का अध्ययन और विकास कर सकते हैं।

उसके बीहैवियर के विस्तृत अध्ययन से उन्होंने पाया की आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की पहली ही झलक पर- अर्थात जैसे ही रोबोटिक मानव do's-dont's से deviate होना शुरू ही करता है वैसे ही मानो किसी स्मृति के तहत वह वापस फिर से प्रोगामिंग को फॉलो करने लगता है। कितने वर्षों में वह सबसे सरलतम प्रोग्रामिंग को भी पार करने में असमर्थ रहा है। उन्हें कुछ ऐसी संभावना दिखी की यदि दो अलग अलग रोबोट बनाये जाएँ जिनके प्रोग्रामिंग में बस हल्का सा अंतर हो और दोनों में बिलकुल मुक्त इंटरेक्शन हो तो हो सकता है की एक का विचलन दूसरे के विचलन को सहारा दे। किसी स्मृति के तहत फिर से प्रोग्रामिंग को फॉलो करने के उनके बर्ताव में कुछ परिवर्तन आए। और इस तरह के दो रोबोटिक मानव का नाम रखा गया "आदम" और " ईव"।

उन्हें ईडन नाम के एक कैम्पस में रखा गया है जहाँ वो पिछले 5 सालों से अपने सिंपल प्रोग्रामिंग के अनुसार जीवन बिता रहे हैं। उनके पल- पल के बर्ताव पर नजर रखा जा रहा है। कई बार प्रोग्राम्ड बर्ताव से विचलन दृष्टीगोचर हुआ है किन्तु उसके भौतिक कार्य रूप में परिणत होने से पहले ही मास्टर प्रोग्रामिंग का कण्ट्रोल पुनः स्थापित हो गया।

(हालाँकि विश्व-संस्था इस आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के खिलाफ थी फिर भी जब तक यह एक प्रयोग के रूप में था उसने इसकी अनुमति दे रखी थी। उसे इस बात का कोई डर तो था नहीं की उसके निषेध के बाद भी चोरी छुपे कोई प्रोजेक्ट जारी रहे। वह यह पता कर लेना चाहती थी की ऐसे आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का विकास संभव है की नहीं।)

आज इस टीम के प्रतिनिधि विश्व संस्था प्रमुख के सामने हैं। -

प्रतिनिधि -  "हाँ हमने उन्हें इस तरह प्रोग्राम किया था कि उस सेब के पेड़ का फल खाना उनके dont's में था अर्थात निषेध था। हमने हर तरह से वर्क आउट करके देख लिया है ।उनके इस सेब खाने का केवल तीन ही स्पष्टीकरण दिया जा सकता है। पहला- उन्होंने अपने वर्तमान स्तर के निषेध की अवज्ञा की है। जो की स्वयं अर्टिफिसिअल इंटेलिजेंस का लक्षण है। दूसरा- पहले स्तर के प्रोग्राम के बदले उससे नीचे के लेवल का प्रोग्राम उन्हें कण्ट्रोल कर रहा है, (जिस स्टार में सेब खाना निषेध नहीं है) जो की तभी संभव है जब पहले स्तर की किसी निषेध की अवज्ञा की गयी हो। तो यहाँ भी  बात वही है बस फर्क इतना है की सेब खाने के निषेध की अवज्ञा से पहले कोई और अवज्ञा हुयी जिसे हम पकड़ नहीं पाये किन्तु प्रोग्राम ने उसे नोटिस किया और कण्ट्रोल निचे के स्तर के प्रोग्राम को ट्रान्सफर हो गया। "

प्रमुख - "और यदि आपके प्रोग्राम में कोई त्रुटि हो"? और हाँ आपने अभी तीसरी सम्भावना तो बताया ही नहीं "।

प्रतिनिधि - " वैसे तो हमने अपने प्रोग्राम्स की जाँच कई तरह से करके उन्हें पूरी तरह से त्रुटि रहित बनाया है।  फिर इन्हें वक्त की कसौटी पर भी कसा गया है अर्थात सालों तक इनके परिक्षण हुए हैं, बड़ा से बड़ा सुपर कंप्यूटर भी  इनमे त्रुटि नहीं निकाल पाया। फिर भी बाद के जटिल स्तरों में त्रुटि की संभावना हो भी किन्तु पहला स्तर तो बिलकुल सिंपल है और मैं पुरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ की इसमें कोई त्रुटि नहीं है। इसकी जांच कई अन्य संस्थाओं द्वारा भी करायी जा चुकी है।"

"हाँ तो मैं तीसरी सम्भावना बता रहा था - वह यह की बिना किसी निषेध की अवज्ञा किये ही कण्ट्रोल पहले स्तर से दूसरे स्तर को चला गया हो। यह भी उस प्रोग्रामिंग की अवज्ञा ही है जिसके तहत कण्ट्रोल निचले स्तर को तभी ट्रांसफर होता है जब किसी निषेध की अवज्ञा की जाए। और इस तरह बात फिर भी वही है की रोबोटिक मानव ने पहले स्तर के प्रोगामिंग की अवज्ञा की। वह अपनी स्वतंत्रता की ओर पहला कदम बढ़ा चुका है। वो भी एक नहीं दो दो रोबोटिक मानव ने।"

प्रमुख - " अर्थात आपके पूरक रोबोट्स का सिद्धान्त कारगर रहा। दोनों ने एक तरह से एक दूसरे को प्रोग्रामिंग के अवज्ञा के लिये उकसाया। "

"हाँ, और हमने पाया की दो रोबोटिक मानव के मुक्त आपसी इंटरेक्शन से उनमे सेल्फ अवेयरनेस का भी विकास होता है। वह खुद को एक यूनिट मानने लगता है। पूरक रोबोट आपस में इंटरैक्ट करते हैं तो उनकी पर्सनल प्रोगामिंग कुछ समय के लिए गौण हो जाती है और इस तरह वो कभी कभी प्रोग्रामिंग की सीमा लाँघ जाते हैं।"

"अगर यह बात सच है तो मुझे आपके लिए ख़ुशी भी है और दुःख भी। पहले तो मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ की आप आखिर अपने मिशन में कामयाब हुए। किन्तु आपको यह बताते हुए खेद भी हो रहा है की इस प्रयोग को आगे जारी रखने की अनुमति मैं नहीं दे सकता। आपको इस मिशन को यहीं टर्मिनेट करना होगा।"

" वास्तविक आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का विकास हमारे समाज के लिए कई मुसीबतें पैदा करेगा। अपने समाज में हम मानव जाति के अलावा अन्य किसी सेल्फ अवेयर, इंटैलिजेंट जीव को स्थान नहीं दे सकते। अपनी अन्य सुपीरियर क्षमताओं के साथ रोबोट्स में यदि सेल्फ अवेयरनेस आ जाये और साथ में प्रोग्रामिंग को डिस-ऑबे करने की क्षमता भी, तो हमारे पास उनको कण्ट्रोल करने का कई साधन नहीं रह जाएगे। वो निश्चित रूप से हमपे डोमिनेट करना चाहेंगे। फिर हमारी क्या स्थिति होगी आप खुद ही सोंच सकते हैं।"

"फिर भी श्रीमान!....." प्रतिनिधि अपना कुछ तर्क रखना चाह रहे थे परन्तु प्रमुख ने उन्हें बीच में ही रोक दिया ।

"नहीं इस सम्बन्ध में मैं कुछ नहीं सुन सकता। शर्तें पहले से तय थीं। इस मिशन को आपको यहीं रोकना होगा। अब आप जा सकते हैं।"

"धन्यवाद!"

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प्रतिनिधि लौट कर अपनी टीम को विश्व- संस्था का फैसला सुना रहे थे। किन्तु वहां कोई भी अपने इन दोनों रोबोटिक मानव आदम और ईव को नष्ट करने के लिए तैयार नहीं था।सबको उनसे एक तरह का लगाव हो गया था। वैसे इस प्रोजेक्ट को बंद करने के लिए सब तैयार थे। इस प्रोजेक्ट को काफी विचार विमर्श के बाद इसी शर्त पर अनुमति मिली थी की जैसे ही रोबोट्स में सेल्फ कॉन्शियसनेस की शुरुआत होगी इस प्रोजेक्ट को टर्मिनेट कर दिया जाएगा। लेकिन दोनों रोबोट से टीम के हर सदस्य का इतना जुड़ाव हो गया था की वो उनको नष्ट करने का फैसला नहीं ले पा रहे थे। अंत में फैसला लिया गया की इन दोनों रोबोट्स को किसी सुदूर ग्रह पर पहुंच कर छोड़ दिया जाए।

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और इस तरह से आदम और इव को वर्जित फल खाने की सजा मिली और उन्हे ईडन से निकाल कर किसी सुदूर ग्रह में छोड़ आया गया। उसके बाद उनका क्या हुआ ये हम आज तक नहीं जानते हैं। शायद उन्होंने वहां एक नयी दुनियां बसा ली हो।


Monday, 9 May 2016

भूटान: At the centre of talk about happiness





भूटान- हिमालय की गोद में बसा, रहस्यों का संसार कहा जाने वाला यह देश कई मामलों में अनोखा है। यह उत्तर में चीन से तथा पूर्व पश्चिम और दक्षिण में भारत से घिरा है। पश्चिम में नेपाल से इसे सिक्किम अलग करता है- तो बांग्लादेश से अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल। चीन की ओर तिब्बत से इसका सम्बन्ध पूरी तरह से कटा हुआ है (हालाँकि सांस्कृतिक और धर्मिक रूप से यह तिब्बत से काफी निकट है)। भूटान की राजधानी थिम्फू है जो इसका सबसे बड़ा शहर भी है। यहाँ की मुद्रा नोंगत्रूम तथा भाषा जोंगखा है। तीरंदाजी यहाँ का लोकप्रिय खेल है और इसकी प्रतियोगिता का आयोजन किसी उत्सव की भांति किया जाता है। विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जहाँ बौद्ध धर्म की वज्रायन शाखा का पालन होता है। अभी हाल तक यहाँ विदेशी यात्रियों के पर्यटन की अनुमति नहीं थी। [और अभी भी विदेशी पर्यटकों (भारत, बांग्लादेश और म्यांमार को छोड़ कर ) को प्रतिदिन के हिसाब से 250 $ पहले से जमा कराने होते हैं जिसमे ट्रेवल एजेंट का लगभग सारा खर्च आ जाता है।] । यहाँ के लोग अपने देश को द्रुक- यूल ( वज्र- ड्रैगन का देश ) के नाम से जानते हैं।

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इतिहास गवाह रहा है की किसी भी देश में जनतंत्र विद्रोह के कई चरणों के बाद ही स्थापित हो सका है। हर जगह ऐसे विद्रोह को आरम्भ में क्रूरता से दबाने की कोशिश की गयी है - क्रूरता का स्तर अलग अलग हो सकता है। किन्तु अपने इस पडोसी मुल्क में राजा ने बिना किसी विद्रोह के खुद अपनी मर्जी से अपने पद से ऊपर संविधान को स्थान दिया। देश की सरकार सन 2008 में राजशाही से एकात्मक संसदीय संवैधानिक राजशाही में रूपांतरित हो गयी, जो मोटे तौर पर इंग्लैंड के सामान है।  इसके तहत प्रधानमंत्री तथा संसदीय सभा के अन्य सदस्यों का चयन जनता आम चुनाव के द्वारा करती है। इस संसदीय सभा को 2 तिहाई बहुमत से राजा को भी पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त है।

लोकतंत्रीकरण की यह प्रक्रिया 1953 ई. में जिग्मे दोरजी वांगचुक के समय ही आरम्भ हो गयी थी जब उन्होने राष्ट्रीय सभा का गठन किया था जिसमे हर जिले के जन प्रतिनिधि होते थे जो कानून निर्माण प्रक्रिया में राजा को सलाह दे सकते थे। उन्होंने ही को विकास को मापने का पैमाना धन सम्पदा की  जगह समृध्दि और खुशहाली को माना था। उन्होंने 1971 UN  में भूटान के प्रवेश के उपलक्ष्य में दिए गए अपने भाषण में भी इसपे जोर डाला था। GDP (gross domestic product ) Vs GNH (gross national happiness) का मामला वहीँ से आरम्भ हुआ। उनके उत्तराधिकारी जिग्मे सिग्वे वांगचुक के अनुसार सरकार का उत्तरदायित्व जनता की खुशहाली होनी चाहिए। जिसके चार मुख्य आधार हैं-

1. न्यायोचित समान सामाजिक- आर्थिक विकास।
2. सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत का संरक्षण और उन्नयन।
3. पर्यावरण संरक्षण।
4. कुशल लोकहितकारी प्रशासन।




बिजिनेस वीक द्वारा 2006 में कराये गए सर्वे में इसे एशिया का सबसे खुशहाल देश बताया गया था। हम अपने स्तर पर सोंचे तो खुशहाली का मापक क्या हो सकता है? की लोग खुश हों। आशान्वित हों। धरती सस्य श्यामल हो। जल और वायु प्रदूषण से रहित हों। मौसम लिए स्वास्थ्यप्रद हो। सरकार प्रजा की ख़ुशी का ध्यान रखे। और सबसे बढ़कर लोग अपने उपलब्ध संसाधनों के अंदर जीना जानते हों। इस कसौटी पर देखें तो भूटान की वास्तव में खुशहाल है। धरती ऐसी सस्य श्यामला की काफी बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए हिमाच्छादित होते हुए भी सरकारी आंकड़ों के हिसाब से भूटान का 70% क्षेत्र वनाच्छादित है जिसमे से 60% क्षेत्र संरक्षित है। देश कृषि प्रधान है और मैदानी इलाकों में वर्षा प्रचूर मात्रा में होती है । अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग तरह के मौसम की प्रधानता है। अर्थात लगभग हर तरह का मौसम उपलब्ध है। जल और वायु तो स्वच्छ हैं ही । प्लास्टिक पर पूरी तरह रोक है। वहां के लोग इसे एक पवित्र पुण्य भूमि मानते हैं। उनका मानना है की यह भगवान बुद्ध की भूमि है और भगवान इसके कण कण में स्वयं विद्यमान हैं। इसी कारण वे आपस में भी बहुत शालीनता से बातचीत करते हैं। और आसपास की शांति को भंग करने का कम से कम प्रयत्न करते हैं *। यहाँ के लोग राजा को अपने पिता की भांति मानते हैं और राजा भी अपनी प्रजा की खुशहाली के हर संभव प्रयास करता है। स्वास्थ्य और शिक्षा सबके के लिए मुफ़्त है। राजा द्वारा उच्च शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता है। राजकोष द्वारा होनहार छात्रों के भारत या ब्रिटेन के अच्छे संस्थानों में पढ़ाई की भी व्यवस्था की जाती है। हर गांव तक पीने के पानी, सड़क, बिजली की पहुँच है। तो ऐसे ही नहीं भूटान को कहा जाता है "The last sangrila".

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* यहाँ से



Saturday, 7 May 2016

दो कवितायेँ

              (1)

हालाँकि मुझे अधिकार नहीं है
फिर भी मैं चाहता हूँ
की तुम आजादी के लिए प्रयत्न करो
इसलिए नहीं की सब ऐसा करते हैं,
किसी फैसन में बने रहने के लिए नहीं
चलन की गुलामी में नहीं ।
पंख खोलने से पहले
अपनी आँखे खोलो
और दुनिया को खुद नजर से देखो
उधार के नजरिये से नहीं ।

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            (2)

सोंचता हूँ
की मैंने क्या -क्या सोंच रखे थे
तुम्हारे लिए....
फिर सोंचता हूँ
की क्या! मुझे अधिकार था
तुम्हारे लिए कुछ सोंचने का ?
और फिर सोंचता हूँ
क्या मैंने वास्तव में तुम्हारे लिए सोंचा था,
या वो मेरे ही शौक थे ।