Saturday, 7 May 2016

दो कवितायेँ

              (1)

हालाँकि मुझे अधिकार नहीं है
फिर भी मैं चाहता हूँ
की तुम आजादी के लिए प्रयत्न करो
इसलिए नहीं की सब ऐसा करते हैं,
किसी फैसन में बने रहने के लिए नहीं
चलन की गुलामी में नहीं ।
पंख खोलने से पहले
अपनी आँखे खोलो
और दुनिया को खुद नजर से देखो
उधार के नजरिये से नहीं ।

      *      *      *

         
            (2)

सोंचता हूँ
की मैंने क्या -क्या सोंच रखे थे
तुम्हारे लिए....
फिर सोंचता हूँ
की क्या! मुझे अधिकार था
तुम्हारे लिए कुछ सोंचने का ?
और फिर सोंचता हूँ
क्या मैंने वास्तव में तुम्हारे लिए सोंचा था,
या वो मेरे ही शौक थे ।