tag:blogger.com,1999:blog-4613644862464344592024-02-20T07:14:18.295-08:00..जिंदगी के नशे में.…… जिंदगी के नशे में \
कुछ गाता हूँ \
गुनगुनाता हूँ \
कभी चीखता चिल्लाता हूँ \
रोता रुलाता हूँ \
तो कभी हँसता हंसाता हूँ \
या कभी चादर ओढ़ कर \
चुप-चाप सो जाता हूँ… Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.comBlogger71125tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-2626008745049660852021-07-15T06:23:00.004-07:002021-07-15T06:23:39.836-07:00शिक्षा और विद्यार्थी को समाज से जोड़ने के लिए कुछ सुझावप्रारंभिक शिक्षा का उद्देश्य आज मैं एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो इस देश के, इस दौर के प्रारंभिक शिक्षा से गुजर चुका है, अपने कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मैं किसी भी विषय का विशेषज्ञ नहीं हूँ, इसीलिए मेरे सुझावों में मैंने बस आगे बढ़ने के लिए कुछ दिशाएँ इंगित की हैं। अगर वो दिशा सही लगे तो विशेषज्ञ उसके रास्ते और विस्तृत रूप रेखा तयDayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-58282978905769550862020-10-04T02:42:00.003-07:002020-10-04T02:43:29.726-07:00इंसाफ आओ सड़कों पर-चलो इंसाफ ले के आएं।भीड़ मचाओदौड़ो भागो चिल्लाओ-चलो इंसाफ ले के आएं।खून को उबालोसनसनाते हुए लहू कोदिमाग मे उतारो-चलो इंसाफ ले के आएं। ? ? ?अपना अपना हिस्सा लेनेसबको आना होगाइससे पहले की खत्म हो जाए-चलो इंसाफ ले के आएं ।Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-27327642946333208832017-02-07T09:05:00.000-08:002019-03-30T21:59:56.128-07:00गौरैया
एक छोटी सी चिड़िया
इस सुन्दर गुलजार में
आवाज देती है अपनों को
पर यहाँ और कौन है उसको सुनने वाला
उसके गीत.. या उसका विलाप
वो जहाँ भी है .. जिस भी मनोभूमि में;
गुलजार में या बीहड़ में
वह अकेली ही तो है
* * *
2.
वैसे भी गौरैयों पे कौन ध्यान देता है।
वो ना तो सेक्युलर हैं
ना तो राष्ट्रवादी
और ना ही
साम्यवादी
संख्या ही Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-20935839816859964142016-05-15T08:07:00.000-07:002016-05-15T08:15:59.447-07:00Artificial intelegence
एक बार फिर से आदम और इव को वर्जित फल खाने की सजा मिली और उन्हे ईडन से नि&#Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-81524165600409930422016-05-09T02:57:00.000-07:002016-05-09T02:57:06.256-07:00भूटान: At the centre of talk about happiness
भूटान- हिमालय की गोद में बसा, रहस्यों का संसार कहा जाने वाला यह देश कई मामलों में अनोखा है। यह उत्तर में चीन से तथा पूर्व पश्चिम और दक्षिण में भारत से घिरा है। पश्चिम में नेपाल से इसे सिक्किम अलग करता है- तो बांग्लादेश से अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल। चीन की ओर तिब्बत से इसका सम्बन्ध पूरी तरह से कटा हुआ है (हालाँकि सांस्कृतिक और धर्मिक रूप से यह तिब्बत से काफी निकट है)। भूटान की राजधानी Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-49787263151586939572016-05-07T08:13:00.001-07:002016-05-07T08:20:37.073-07:00दो कवितायेँ
(1)
हालाँकि मुझे अधिकार नहीं है
फिर भी मैं चाहता हूँ
की तुम आजादी के लिए प्रयत्न करो
इसलिए नहीं की सब ऐसा करते हैं,
किसी फैसन में बने रहने के लिए नहीं
चलन की गुलामी में नहीं ।
पंख खोलने से पहले
अपनी आँखे खोलो
और दुनिया को खुद नजर से देखो
उधार के नजरिये से नहीं ।
* *  Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-40521140373490861162016-04-23T07:54:00.001-07:002016-04-23T07:54:09.136-07:00मैं प्रगतिवादी हूँ मैं प्रगतिवादी हूँ -
क्योंकि मैं अपडेट रहता हूँ प्रगतिवादियों के चल&#Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-36117129874744426022016-04-16T06:11:00.000-07:002016-04-16T06:11:27.713-07:00कमजोर क्षण
वो उस एक छन में प्यार नहीं हुआ पगली
जब हमारी आँखे टकराई
वो तो उत्स था
सृष्टि के आरम्भ से संचित प्यार का
हमारे अंदर से तुम्हारे अंदर से.....
एक झरना
जो कहीं से भी फूट सकता था
किसी भी कमजोर क्षण....।
Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-30331409568454945382015-10-21T10:24:00.000-07:002015-10-21T18:35:08.506-07:00रक्षक
बस बोलने भर से तुम रक्षक नहीं बन जाते
देश के इतिहास-भूगोल के
सभ्यता-संस्कृति के...
खुद को रक्षक मानते हो तो ये कुल्हारी?
क्या कहा?-इस वाटिका की रक्षा के लिए ।
इसपे होने वाले हमले से लोहा लेने के लिए ।
बेडौल, बेतरतीब उग आये
झार-पतवार से निपटने के लिए ।
लेकिन मैंने तो तुम्हे अक्सर उन वट- पीपलों पे वार करते देखा है
जिनके छाँव तले
वाटिका पनपी है ।
नासमझों!
कुछ न समझ आये तो
कुल्हारी फ़ेंक Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-55192845413612776662015-10-10T10:32:00.001-07:002015-10-10T10:41:14.055-07:00कविता ऐसी भी क्या? किस काम की ?
तुम्हारा कवित्व सोना है -
उछालो उसे- खड़ा और चमकदार
- ताकि दुनिया गुणे ।
उसे गुदरी में क्या छिपाना
की कोई पहचान न सके
कोई डिटेक्टर लगाना पड़े -
विद्वान्-पंडित बुलाने पड़े
उसके गुण धर्म समझने के लिए।
सोना - ऐसा भी क्या?
किस काम का?
Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-15556789797064669162015-10-01T23:43:00.000-07:002015-10-02T02:49:53.056-07:00ये कैसी लपलपाती आग है
ये कैसी लपलपाती आग है
जो जल रही है।
जिसके जद में खरगोश, चूहे, बिल्ली, आते हैं
और आते है घास, पतवार,
हिरन, बकरी, कुत्ते और सियार।
सब जल रहे हैं
उबल रहें हैं
और एक दूसरे को जला रहे हैं
झुलसा रहे हैं ।
किसी को एक चीटीं काट ले
तो जाग उठती है उसकी जलन
लपटें छोड़ता निकल पड़ता है
अपराधी की तलाश में
जलाने अपने जैसे किसी को
प्रतिशोध की आग में
वह नियंता सजा मुक़र्रर करता है
सजाये मौत बाटता फिरता हैDayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-15598534892195738822015-10-01T20:54:00.000-07:002015-10-01T20:54:15.494-07:00राक्षस
आँख खोलोगे तो देखोगे की मैं नहीं हूँ
मैं बन गया हूँ एक राक्षस
क्योंकि मुझे सपना आया था की मुझपे कोई अत्याचार हुआ है।
Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-5639282676227319082015-09-23T05:45:00.001-07:002015-09-23T05:45:41.942-07:00inspirations to cross the darkness of night
रात :
पर मैं जी रहा हूँ निडर
जैसे कमल
जैसे पंथी
जैसे सूर्य
क्योंकि
कल भी हम खिलेंगे
हम चलेंगे
हम उगेंगे
और वो सब साथ होंगे
आज जिनको रात ने भटक दिया है।
-धर्मवीर भारती
- गीता के सार सी मालूम होती हैं मुझे ये Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-67508607942673080392015-09-21T09:46:00.000-07:002015-09-21T10:02:08.619-07:00मलवा
अरे ! क्यों गिराते हो दीवारों को?
इनमें भी एक जीता जागता जीवन है!
क्या कहा - ?
सड़न है, दुर्गन्ध आती है,
सीलन है, दीवारें जर्जर हैं ,
कई जीवन कैद हैं इनके भीतर,
कई जीवन दफन हैं इनके नीव तले !तो दो हथौड़ा-मैं भी तुम्हारे साथ हूँDayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-83299343668245548622015-09-02T10:44:00.001-07:002015-09-02T10:44:11.082-07:00दिल्ली से बिछुड़ते समयमैं नहीं चाहूँगा 
की दिल्ली मेरे रग रग में बहे 
जरूरत बनकर।
मैं चाहू&#Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-85630345550382174812015-08-22T00:21:00.001-07:002015-08-22T00:47:43.395-07:00तूँ और मैं
"क्या दादा आप इस 4G के टाइम में अभी भी 2G गड्डी हाँक रहे हो ।"
"देखो दिल के मामले में सहूलियत से काम लेना चाहिए । प्यार को धीरे धीरे पनपने दो । धीमे आंच पर पकने दो । हर लम्हे को महसूस करो ।"
"अच्छा ! तो पहले आप decide कर लो की प्यार करना इम्पोर्टेन्ट है की महसूस करना । क्योंकि महसूस करने के लिए तो आपके पास समय की कोई कमी नहीं है। अभी खुद ही खुद के दिल में प्यार का पनपना महसूस करो फिर कुछDayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-12784689651713095062015-07-04T22:11:00.000-07:002015-07-04T22:21:02.894-07:00नजरिया -: सिलसिला
हर कलाकार अपनी कला के माध्यम से जिंदगी को समझने-समझाने की कोशिश करता है । कहीं एक पहलू तो कहीं दूसरे पहलू को विस्तार देता है ताकि उसकि कई बारीकियों तक हमारी निगाह पहुँच सके । कला के ग्राहक वर्ग में हर एक आम इंसान होता है जो उसमें अपनी और अपने आस-पास की जिंदगियों और उसके विभिन्न दृश्यों को कलाकार के दृश्टिकोण से मगर अपनी नजरों से देखता है, समझता है, महसूस करता है । यहाँ मैं अपनी नजरो से प्रस्तुतDayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-66370356600557096732015-05-03T10:43:00.001-07:002015-05-03T10:56:59.657-07:00वक़्त की कूची- जिंदगी के कैनवस
क्यूँ ठिठक सा गया वक़्त
मेरी जिंदगी के कैनवस पे
अपनी कूचियों से रंग भरते-भरते।
.... दूर आकाश में चमकते सितारों के
चकाचौंध सपने मैं कहाँ मांगता हूँ-
धूसर मिटटी का रंग तो भर देते।
.... कहीं-कहीं मौके-बेमौके कुछ बारिश-
कुछ हरियाली,
सर के ऊपर एक अरूप आकाश
और आँखों के सामने कुछ दूरी पर
केशरिया क्षितिज ;
क्या इतना भी ज्यादा था?
&Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-89935568571436422962015-05-02T18:17:00.002-07:002015-05-02T18:19:45.813-07:00
कविता के पाठकों का घटते जाना हाल के समसामयिक गोष्ठियों में चर्चा में बना रहता है। लोग चिंतित दिखते हैं की आज अभिव्यक्ति की बढ़ती सुगमता के साथ कविता के लिखे जाने और और उसके आम जान के दृष्टि फलक तक पहुँच में काफी इजाफा तो हुआ है परन्तु उनकी गुणवत्ता में काफी ह्रास हुआ है और उस अनुपात में कविता के पारखी, उनको पढने-सुनने वालों और गुणने Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-63152541614158550682015-04-23T00:31:00.000-07:002015-04-23T00:31:34.153-07:00उलझन
लिखने को तो जी बहुत कुछ चाहता है
पर डर लगता है
कहीं शब्दों की झाड़ियों में
जिंदगी उलझ कर न रह जाए।
read this in the context of my previous blog post
Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-91988687605147818992015-04-09T22:57:00.000-07:002015-04-09T23:13:45.809-07:00तुम नहीं हो !
तुम नहीं हो !
गुलदान कोने में सहमा सा पड़ा है।
मुझसे पूछना चाहता है -
कब आओगे ?
कब जाओगे ?
पर पूछता नहीं।
तरस गया है- जिन्दा फूलों को।
ये प्लास्टिक के फूल-
न खिलते हैं ,
न मुरझाते हैं ,
जैसे के तैसे
समय काट रहे हैं।
समय ही तो काट रहे हैं-
ये गुलदान,
ये दरों-दीवार,
और मैं भी
जैसे के तैसे .…
Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-20747817840732596322015-04-05T22:52:00.001-07:002015-04-05T22:52:35.024-07:00प्रेम का अंकुर
1.
अनसुनी यह कौन सी धुन छिड़ रही है
छेड़ता है कौन मन के तार को फिर
अंकुरण किस भाव का यह हो रहा है
जागता क्यों है हृदय में राग नूतन।
भर रहा है दिल भरे मन प्राण जाते
दर्द Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-4431639307960284302015-03-21T06:10:00.001-07:002015-03-21T06:10:25.683-07:00निंदिया
निंदिया के घरौंदों में सपनों को बुला लेना
पलकों के किवाड़ों को हौले से सटा लेना ।
टूटे न देखो ये निंदिया …
मोती से नयनों की निंदिया …
सपनों-सपनों मचलती ये निंदिया … ।।
हिडोले पे मद्धम सुरों के - ख्वाबों की अनगिन कहानी
सांसों की तुतली जुबानी - मन ही मन में सुना देना
पलकों के किवाड़ों को हौले से सटा लेना ।
टूटे न देखो ये निंदिया …
नाजुक सी ज्यूँ बंद कलियाँ …
चाँद - तारों Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-10588243334515634462015-01-24T05:10:00.000-08:002015-02-24T22:50:06.337-08:00।। वासंती ।।
टूटे तार
खंड-खंड स्वर
राग विखंडित
क्षिप्त रागिनी
ऐ मृदुले! जीवन के सुर-
&Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-461364486246434459.post-20944972123546362952015-01-13T06:40:00.000-08:002015-01-24T05:21:19.389-08:00जीवन साथी के लिए -
मैं सुन नहीं पाया
तुम्हारे क़दमों के लय को
पहचान नहीं पाया
तुम्हारे दिल के तरंग
को
तुम्हारे कंठ के उमंग को
बस इन्तजार करता रहा
कि तुम मेरे लिए
कोई प्रेम गीत गाओगी
और तुम्हारा जीवन संगीत
मेरे लिये अनसुना रह गया।
Dayanand Aryahttp://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.com0