तुम भोले हो
दर्द से अनजान
दिल की भाषा क्या जानो ।
दिल दर्द में पक कर
समझने लगता है दिलों की भाषा-
सुन पता है
दिलों में स्पंदित दर्द;
सम्प्रेषित कर पाता है
अपनी विश्रान्त सहानुभूति-
कभी आँखों के माध्यम से
तो कभी एक हलके से स्पर्श के सहारे;
कभी उतर जाता है किसी दिल में
बिना किसी माध्यम के
या विस्तृत हो कर समाहित कर लेता है
किसी दिल को अपने दायरे में
और अपना लेता है उसे उसे
उसके दर्द के साथ ।
भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआप सबों का आभार !
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