Thursday, 22 March 2012

Floting Wishes!


हे  प्रभु !
एक  प्रार्थना  है  तुझसे 
कि  ये  मासूम  मुस्कान 
जिनका  अक्स  पड़ते  ही  खिल  उठता  है
हर  उदास  दिल ,
हमेशा  यूँ  ही  महकते  रहें ;
कि  सूरज  चाँद  और  सितारों  से  सजे  ऊँचे  आसमान 
इनका  आंगन  हो 
जिनमे  खेला  करें  ये  उम्र  भर 
बेख़ौफ़ , बिना  किसी  बंदिश  के 
अपनी  ख्वाबों  के  डैने  फैलाये  ;
सलामत  रहें  इनके  सपने , इनकी  नींदें ,
(स्नेह  के )  पानी  के  बिना , इनकी  प्यास  न  सुखने  पाए ;
रस्ते  इनके  लिए 
हर  ओर  खुली  रखना 
पर  न  देना  इन्हें  अंधी  भूख  मंजिल  की ;
चलना  या  रुकना  राहों  पे 
इनके  इख़्तियार  में  देना
क्यों  इन्हें  तेरे  अलावे  और  कोई  चलाये ;
हाँ ,
माँ  सा  साया  सर पे  इनके
हमेशा  बने  रहना ,
सम्हालना  इन्हें  हर  ठोकर  के  बाद ;
देना  इनको  वो  जिगर , वो  दिल
कि  हर  दुःख  से  लड़  सकें 
कि  अपना  सकें  हर  दुखी  को.......


एक  खुदगर्ज़  सी  ख्वाहिश  और  भी  है
कि  हो  सके  तो  कर  लेना 
मुझे भी  इन्ही  में  शामिल 
कि  मैं  भी  खिलूँ  फूलों  कि  तरह 
कि  महकूँ  बागों  कि  तरह
कि  चहकुं  पक्षी  कि  तरह
कि इस  सवेरे  के  स्वागत  को 
एक  स्वर  मेरा  भी  हो
जो  समवेत हो
सूरज  कि  अरुण  किरणों  से ...

सवेरा  होने  दो  प्रभु !
सवेरा  होने  दो !




O! Lord
Bless these innocent flowers
With ever lasting pretty smile,
To soothe every sullen heart
With warmth of their mirthfulness.
Bless them with boundless sky
With ever shining sun and moon.
In which untrammeled they can fly
On the wings of dreams.

Secure all their dreams
Whether awake or in sleep.
Never ever let their needs die
Without realization.
Their own path, let them follow
Without falling for pseudo-
Objectives set by ego.
Let nothing other then yours mighty wish
Dictate them.
Be their patron-
To guide them through all the way,-
To hold them in every disturbance.
Give them courage
To confront every hardship.
Fill their heart with solace
For every disconsolate.

May be it is selfish
But one more wish I do have.
Let me be one among them-
To bloom like flower
Filling the garden with fragrance
-To tweet like those birds
Proclaiming the breaking of dawn
In a note
In unison with the crimson ray of sun.


Tuesday, 20 March 2012

kasturi ki talash

मैं
जब तक
सोता जगता था,
उठता बैठता था,
खेलता कूदता, खाता पीता था ;
इस कृत्रिमता  से  अछूते 
कच्ची  भूमि  पे ,
कच्चे  घरों  में ,
कच्चे  बर्तनों  से ;
ये  जीवन  महकता  था
एक  सोंधी  खुशबू  से  ।

* * *

आज  जब  रहने  लगा  हूँ
इस  सभ्य  समाज  में ,
जहाँ  एक  अगोचर  दूरी  है
इंसान  से  इंसान  के  बीच ,
जहाँ  आपसी सम्बन्ध
नियमों  से परिभाषित  हैं
प्यार से  नहीं ,
जहाँ  इजाजत  नहीं
किसी  को  कुछ  महशूश करने  की ,
जहाँ  ख्याल  भी  आते  हैं
एक  पटरी  से  बंध  कर ,
जहाँ  सपनों  के  उड़ान  की  भी
सीमा  नियत  है ,
जहाँ  महत्वपूर्ण  है  की  क्या  दिखते  हैं
इससे  ज्यादा  की  क्या  हैं ,
जहाँ  मायने  रखता  है
की  किससे  कैसे  पेश  आते  हैं ,
इससे  ज्यादा  की  किसका  कितना  ख्याल  रखते  हैं ,
जहाँ  सब  एक  दुसरे  के  प्रतिद्वंदी  हैं ,
साथी  नहीं ,
जहाँ  हर  साँस  की  एक  कीमत  है
वो  भी अलग  अलग ;

* * *

बेचैन  रहता  है  अन्दर  कोई  मृग
उसी  कस्तूरी  की  तलाश  में  .........


Wednesday, 7 March 2012

Lingering Colour

Those colours of yours
Very light
But very deep
Soaked into my being
Since very beginning of journey of the life....
Which colours were those
Unaware then,
Puzzled now,
But still those lingers into my Soul
Unfaded, unveiled......


एक रंग डाला था उसने मुझपे 
वर्षों पहले
पता नहीं कौन सा-
लाल, पीला, हरा, सुनहला, उजला, सांवला या गुलाबी ......
बहुत  हल्का सा 
पर बहुत गहरा,
तब हम  कहाँ पहचानते थे रंगों को,
उसके सही अर्थों में
पर आज भी उसकी
ताज़ी सी खुशबू आती है,
और जब - तब
उसकी नमी मुझे सरोबार कर जाती है । ...


                 *    *    *