Sunday, 30 December 2012

मुझे ले चलो
















काफ़ी देर से वो दूर क्षितिज के उस छोड़ पर अपनी नजरें गराए खड़ी थी । मानो उस अँधेरी रात में वो आकाश के परदे के पीछे छिपे चाँद को ढूंढ़ रही हो| उसके अन्दर कई सवाल उमड़ रहे थे मगर उसे उनके जवाब नहीं चाहिए थे। उनके जवाब मिलने की उसे उम्मीद भी नहीं थी। वो बस कहीं खो जाना चाहती थी, इस दुनियाँ से दूर, क्षितिज के उस पर पार कही| अँधेरे ने उसका चेहरा छिपा रखा था| पर उसकी वो उदास तल्लीनता सबकुछ बता दे रही थी । ...

अचानक उसके पलकों के कोर पर आंसू चमक उठे| आकाश में चाँद निकल आया था| मैं स्पष्ट सुन पा रहा था वो कुछ कह रहा था -    


मेरे साथ चल 
तुझे ले चलूँ 
अपने जहाँ 
अपने डगर.... 


उसके भी कंठ हिले| हालांकि होंठ यथावतस्थिर ही थे और मैं चेहरे पर कोई भाव भी लक्षित नहीं कर पा रहा था लेकिन मेरे कर्णपटलों को भेदती हुई एक तीक्ष्ण सी आवाज मैं सुन पा रहा था-  
  
                      तेरे साथ हूँ 
                      मुझे ले चलो 
                      चाहे जहाँ 
                      चाहे जिधर ....।।  

                          *        *     *

                      कई दर्द हैं....
                      बेदर्द हैं 
                      अपने सभी 
                      रिश्ते यहाँ ।
                      मुझे ले चलो 
                      जहाँ ग़म न हो
                      अपने- पराये 
                      न हों जहाँ ।।

      
                      जहाँ रह सकूँ 
                      बिना खौफ़ के 
                      सब रास्ते 
                      हों खुले जहाँ ।
                      जहाँ बन सकूँ 
                      इतरा सकूँ 
                      ज्यूँ बाग़ - वन 
                      में तितलियाँ ।। 

      
                      हर आदमी 
                      इन्सान हो,
                      कुंठित नहीं 
                      व्यवहार हो ।
                      जीवन सरल 
                      अविराम हो ,
                      ना घात  ना 
                      प्रतिघात हो ।।

                           *     *     *

                      पग - पग पे हैं 
                      यहाँ बंदिशें,
                      हर ओर है
                      चुभती नज़र ।
                      हर रास्ते 
                      कांटे उगे,
                      छलनी हृदय 
                      जाऊं किधर ।। 

                      ..........  तेरे साथ अब 
                                  मुझे ले चलो 
                                  चाहे जहाँ 
                                  चाहे जिधर।
अब तक चाँद उतर कर जमीन पर  आ चूका चुका था ।  उसने एक बार फिर आवाज दिया ... 

                                                      ......मेरे साथ चल 
                                                            तुझे ले चलूँ 
                                                            अपने जहाँ 
                                                            अपने डगर.... 

तभी मैं क्या देखता हूँ की जमीन में अपने आप एक दरार बनता है और वो दोनों धीरे- धीरे उसमे उतर जाते हैं । आकाश में एक बार फिर निष्तब्ध अँधेरा छा जाता है । 

अचानक मैं तन्द्रा से बहार बाहर आया  । देखा धूप काफ़ी चढ़ा चुकी थी । सामने मेज पर अख़बार पड़ा था और उसमे से वही लड़की  बाहर झांक रही थी । ऊपर शीर्षक लिखा था "और वो चली गयी..."












Tuesday, 6 November 2012

यक्ष प्रश्न

Today every essential commodity is being guarded by some handful of people. They misuse the power, which was originally given to them for judicial management of those for good of masses. They abuse the people who really need them, to fulfill their own selfishness and masses are left to anguish.



 हर घाट पे
पहरेदार है
एक अदृश्य यक्ष  ;

उन्ही को उपलब्ध है
झीलों का पावन पवित्र  जल
जो उत्तर जानते हैं
उसके सवालों का .....

पर जिनके सामने
सुरसा के मुख सा फैला है
ज़िन्दगी का सवाल
क्या आश्चर्य की वो अनसुनी कर दें
अदृश्य यक्ष के सवालों को;
या सुने भी तो
वो प्यास  से तड़पते जीव
क्यूँ कर दे पाएंगे ज़वाब
उन बड़े -बड़े गूढ़ सवालों का ।

यानि मरना बदा  है 
या प्यास से
या शाप से
हाँ ! जो खुश कर सकते हैं
यक्ष को
जो दे सकते हैं जवाब
उनके सवालों का
उनके लिए हाज़िर है
पूरा सरोवर ।
उनको दी जा सकती हैं
कुछ और भी रियायतें
यथा जीवन दान
किसी प्रिय बंधू का ,
और यदि समीकरण  सही बैठ गया
फिर तो वल्ले वल्ले ;
आपके सारे बंधू बांधव
स्वस्थ हो जाएंगे-


बिलकुल हृष्ट-पुष्ट ।











The story in background is an excerption from the great epic- "MAHABHARAT". the story is like once during period of excilation PANDAWAS felt thirsty. One by one the went to the pond where a YKSHA asked them to answer there question if the want to take water from the pond, as the pond was under his guard. Thirsty PANDAWAS didn't heed him. and eventually died. At last the eldest brother came who pleased the YAKSHA not only by his answers but also by his conduct. And thus not only he got opertunity to take water but also got lives of his brothers as bonus.

Of course the motto and theme of the original story is not like that depicted here but don't take it other wise.


Thanks,
And if you have read it please let me know your view.

Thursday, 11 October 2012

मन-झील के लहरों पर
तैरती हुई 
एक रंगीन ख्वाबों की डिबिया
आ कर टकराई
किनारे पड़े 
हकीकत के चट्टानों से;
वो सपने टूट गए 
पर उनका खुशनुमा रंग

किनारों पे है बिखरा हुआ ।






















Monday, 9 July 2012

Journey With Rays

किरणों का जादू 


कभी बंद आँखों से  महसूस करो 
ये हवाए
तुम्हारे रोम -रोम में समा जाना चाहती हैं; 
ये किरणें 
तुम्हारे भीतर उतर कर 
तुम्हारे अंतस को प्रकाशित करना चाहती हैं।
इन्हें अपना दो पल दो-
ये तुमपे कोई जादू करेंगी
बस इन्हें सहजता से देखना, 
रोकना मत ;

तुम एक नयी दुनिया में जागोगे 
जहाँ तुम्हारे साथ होंगी 
पूरी धरती को एक सूत्र में बांधती ये हवा 
असीम ब्रह्मांड के उस पार से आती प्रकाश की किरणें;
तुम्हारा हृदय स्पंदित हो उठेगा 
अनंत समुद्र की लहरों के लय  में  
तुम  हलके  हो जाओगे 
शून्य के सामान ;


तब तुम क्षितिज पर छा  जाना
बादल बन कर 
और बारिश बन कर भिंगोना 
धरती के कण-कण को ...
भींग जाने दें खुद को भी 
इस अनोखी बारिश में 
धुल जाने देना इसमें अपना अतीत,
घुल जाने देना 
भविष्य के धुएं को भी इसमें...

फिर तुम वर्तमान में तैर सकोगे 
एक चैतन्य प्रकाश की किरण बनकर ।






Feel
With your eyes closed;
A gust of wind
Wishes to breath into you,
A ray of light
Wishes to enlighten your innermost. 
For a few moments
Watch them with quietude,
With them, they will take you
Where you can feel
The air,
Unifying the atmosphere of whole earth
The light,
Traversing across the infinite.
Where your heart will beat
 On the lyrics of eternal wave.
It will feel weightless like naught,
Then winging like clouds
You spread over horizon
And rain to wet every single particle of earth
With drops of  ecstatic joy.

In this supernal rain,
Let yourself be wet,
Past be washed away
And fumes of future be dissolved.

And then you would be
Rapturously winging into present
on ray of consciousness.



Saturday, 9 June 2012

pariwar

Some times you don't want to confront hardships of life head on. you want to be free to do as per your wish to conquer them by simply ignoring them. Tired of being dictated by earthly circumstances you want to walk on your own way or simply need a halt, but then for some of your near and dear one you have to stay in the deadly journey.....


परिवार,
जो आपको जोड़ता है दुनिया से
जो आपको चलना सिखाता है
जो आपको रुकने देता ही नहीं ;
झकझोर कर उठा देता है
जब भी आपको झपकी लगे ;
सहारा देता है आपको
जब भी आप थक जाओ
ताकि आप चलते रह सको ।



Sunday, 27 May 2012

Hain Mere Bhi Kuchh Armaan...


नहीं , मैं कुछ  महसूस  नहीं करता ,
मुझे कैसा भी नहीं लगता ।

कोई मुझे देखे
न  देखे 
देख  के  न  देखे .... मुझे क्या ।
मैं थोड़े ही इस  उम्मीद में हूँ 
की मुझे ढूँढती होगी कोई नजर ,
या अनायास  ही चमक  उठेगी किसी की नज़र 
मुझे पहचान  कर ,
मेरी ओर उठेगी कोई  निगाह या फिर 
बस  यूँ ही, औपचारिकता वश  .....

मुझे थोड़े इंतज़ार है 
किसी जाने अनजाने पुकार का 
जो मुझे बाहर खींच  लाये 
इस  एकाकीपन  से.....  ।

क्यूँ मैं शामिल  करना चाहूँगा 
किसी को अपने ख्वाबों में 
क्यूँ साझा करना चाहूँगा किसी से 
अपनी खुशियाँ , अपने ग़मो -दर्द 
मैं चुपचाप अकेले ही चलने का आदि हूँ अबतक 
क्यूँ मैं तलाशूंगा कोई साथी , कोई हमसफ़र .....
हाँ, सब चले जाओ 
मुझे अकेला छोड़ कर .....।

*     *     *
कसक  उठती है इस  दिल  में तो क्या ?
तड़प उठता है ये दिल  तो क्या ?
ये दिल  रोता  हो तो क्या ?
बंद करके इसे किसी ताबूत में ,
दफ्न कर दूंगा कहीं सीने में ....
दर्द  इस  दिल  के
इस  दिल  को  ही सहने होंगे,
...... क्योंकि मैं कुछ महसूस   नहीं करता ।


Thursday, 22 March 2012

Floting Wishes!


हे  प्रभु !
एक  प्रार्थना  है  तुझसे 
कि  ये  मासूम  मुस्कान 
जिनका  अक्स  पड़ते  ही  खिल  उठता  है
हर  उदास  दिल ,
हमेशा  यूँ  ही  महकते  रहें ;
कि  सूरज  चाँद  और  सितारों  से  सजे  ऊँचे  आसमान 
इनका  आंगन  हो 
जिनमे  खेला  करें  ये  उम्र  भर 
बेख़ौफ़ , बिना  किसी  बंदिश  के 
अपनी  ख्वाबों  के  डैने  फैलाये  ;
सलामत  रहें  इनके  सपने , इनकी  नींदें ,
(स्नेह  के )  पानी  के  बिना , इनकी  प्यास  न  सुखने  पाए ;
रस्ते  इनके  लिए 
हर  ओर  खुली  रखना 
पर  न  देना  इन्हें  अंधी  भूख  मंजिल  की ;
चलना  या  रुकना  राहों  पे 
इनके  इख़्तियार  में  देना
क्यों  इन्हें  तेरे  अलावे  और  कोई  चलाये ;
हाँ ,
माँ  सा  साया  सर पे  इनके
हमेशा  बने  रहना ,
सम्हालना  इन्हें  हर  ठोकर  के  बाद ;
देना  इनको  वो  जिगर , वो  दिल
कि  हर  दुःख  से  लड़  सकें 
कि  अपना  सकें  हर  दुखी  को.......


एक  खुदगर्ज़  सी  ख्वाहिश  और  भी  है
कि  हो  सके  तो  कर  लेना 
मुझे भी  इन्ही  में  शामिल 
कि  मैं  भी  खिलूँ  फूलों  कि  तरह 
कि  महकूँ  बागों  कि  तरह
कि  चहकुं  पक्षी  कि  तरह
कि इस  सवेरे  के  स्वागत  को 
एक  स्वर  मेरा  भी  हो
जो  समवेत हो
सूरज  कि  अरुण  किरणों  से ...

सवेरा  होने  दो  प्रभु !
सवेरा  होने  दो !




O! Lord
Bless these innocent flowers
With ever lasting pretty smile,
To soothe every sullen heart
With warmth of their mirthfulness.
Bless them with boundless sky
With ever shining sun and moon.
In which untrammeled they can fly
On the wings of dreams.

Secure all their dreams
Whether awake or in sleep.
Never ever let their needs die
Without realization.
Their own path, let them follow
Without falling for pseudo-
Objectives set by ego.
Let nothing other then yours mighty wish
Dictate them.
Be their patron-
To guide them through all the way,-
To hold them in every disturbance.
Give them courage
To confront every hardship.
Fill their heart with solace
For every disconsolate.

May be it is selfish
But one more wish I do have.
Let me be one among them-
To bloom like flower
Filling the garden with fragrance
-To tweet like those birds
Proclaiming the breaking of dawn
In a note
In unison with the crimson ray of sun.


Tuesday, 20 March 2012

kasturi ki talash

मैं
जब तक
सोता जगता था,
उठता बैठता था,
खेलता कूदता, खाता पीता था ;
इस कृत्रिमता  से  अछूते 
कच्ची  भूमि  पे ,
कच्चे  घरों  में ,
कच्चे  बर्तनों  से ;
ये  जीवन  महकता  था
एक  सोंधी  खुशबू  से  ।

* * *

आज  जब  रहने  लगा  हूँ
इस  सभ्य  समाज  में ,
जहाँ  एक  अगोचर  दूरी  है
इंसान  से  इंसान  के  बीच ,
जहाँ  आपसी सम्बन्ध
नियमों  से परिभाषित  हैं
प्यार से  नहीं ,
जहाँ  इजाजत  नहीं
किसी  को  कुछ  महशूश करने  की ,
जहाँ  ख्याल  भी  आते  हैं
एक  पटरी  से  बंध  कर ,
जहाँ  सपनों  के  उड़ान  की  भी
सीमा  नियत  है ,
जहाँ  महत्वपूर्ण  है  की  क्या  दिखते  हैं
इससे  ज्यादा  की  क्या  हैं ,
जहाँ  मायने  रखता  है
की  किससे  कैसे  पेश  आते  हैं ,
इससे  ज्यादा  की  किसका  कितना  ख्याल  रखते  हैं ,
जहाँ  सब  एक  दुसरे  के  प्रतिद्वंदी  हैं ,
साथी  नहीं ,
जहाँ  हर  साँस  की  एक  कीमत  है
वो  भी अलग  अलग ;

* * *

बेचैन  रहता  है  अन्दर  कोई  मृग
उसी  कस्तूरी  की  तलाश  में  .........


Wednesday, 7 March 2012

Lingering Colour

Those colours of yours
Very light
But very deep
Soaked into my being
Since very beginning of journey of the life....
Which colours were those
Unaware then,
Puzzled now,
But still those lingers into my Soul
Unfaded, unveiled......


एक रंग डाला था उसने मुझपे 
वर्षों पहले
पता नहीं कौन सा-
लाल, पीला, हरा, सुनहला, उजला, सांवला या गुलाबी ......
बहुत  हल्का सा 
पर बहुत गहरा,
तब हम  कहाँ पहचानते थे रंगों को,
उसके सही अर्थों में
पर आज भी उसकी
ताज़ी सी खुशबू आती है,
और जब - तब
उसकी नमी मुझे सरोबार कर जाती है । ...


                 *    *    *


Thursday, 12 January 2012

Parinda परिंदा

|| परिंदा ||
था वो एक परिंदा
पर समझता रहा खुद को पतंग,
सीखा था उड़ना उसने
बंध कर डोर की सीमा में,
इशारों पे पतंगबाज के ;
काँप उठता था कल्पना करके 
डोर से अलग होने के बाद की अपनी गति |

   *         *         *

उस दिन जब अचानक
नियति ने उससे छीन  लिया
डोर का सहारा
और धकेल दिया खुले आसमान में ;
उसने पाया एक नया आकाश ,
एक नया सहारा, एक नया एहसास ;
आज वो आजाद था उन्मुक्त गगन में 
उड़ने को अपनी मर्जी  से
ऊपर, ऊपर और ऊपर,
और स्वच्छंद था नीचे जाने को भी,
आज वो उत्तरदायी था तो सिर्फ अपने प्रति,
न  की किसी  अनजाने पतंगबाज  के प्रति |  
   *       *       *