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धरती
चाहे आग में जले
या डूब मरे
चाँद की मुस्कराहट कभी कम नहीं होती ।
क्या इसलिए कि वो है हमसे
इतनी दूरी पर -
जहाँ से देख सकता है
हमारा भूत भविष्य वर्तमान
सब एक साथ एक विस्तृत परिप्रेक्ष्य में-
एक दार्शनिक-आध्यात्मिक ऊँचाई ?
या महज एक आडंबर
छिपाने के लिए
हमसे अपनी भौतिक-भावनात्मक दूरी ?
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काफी अलग ख्याल है आर्य ...चाँद जो इतनी दूर है उसके बारे में बस ऐसे ही अनुमान लगाया जा सकता है ...वो मुस्कुराता रहेगा हमेशा या कुछ छिपाने को है इतनी दूर ..अलग लगा ये ख्याल ....
ReplyDeleteमेरी नयी रचना Os ki boond: लव लैटर ...
बात केवल चाँद की नहीं है ;
ReplyDeleteहमारे अपने जीवन मेँ भी कुछ चहेते होते हैं जो हमारे अपने गमों से दूर रहते हैं , कभी तो हम खुद ही ऐसा चाहते हैं, पर कभी इससे दुख भी होता है।
फिर समाज के भी अलग अलग हिस्से इसी तरह एक दूसरे के दुख से निर्लिप्त होकर ज्ञान बघारते फिरते हैं।
धरती को
ReplyDeleteहम माँ कहते हैं और चाँद को
मामा।
भाई
मुस्कुरा नहीं पायेगा कभी
देखकर
बहन के आँसू।
छोड़िये
माँ और मामा वाले रिश्ते को
आपने देखा है पूनम का चाँद?
ज्वार-भाटा आता है
उस दिन
पागलपन और बढ़ जाता है
पागलों का।
कैसे मान लूँ कि
स्वार्थी होगा इतना चाँद
कि डूबती रहे धरती
और मुस्कुराता रहे
वो अकेला
आसमान में?
..............
वर्ड वैरिफिकेशन हटाइये..कमेंट करने वाले को असुविधा होती है और भाग जाता है।
स्वार्थी; चाँद भले न हो, हम इंसान तो हैं-
ReplyDeleteहम स्वयं को धरती की संतान मानते हैँ...
फिर भी किसी हिस्से में हो रहे तबाही से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता जबतक की हम खुद उसमें involve नहीं हों ।
देश जल रहा होता है और हम बेफिक्र सो रहे होते हैं।
भाई भाई के दर्द में शरीक नहीं होता ।
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देवेंद्र जी! ब्लाग पर आने के लिए और अपने विचार देने के लिए धन्यवाद !
बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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