Thursday, 11 July 2013

झीनी सी दीवार

http://marciokenobi.files.wordpress.
com/2012/03/6369830-md.jpg
एक झीनी सी दीवार
जिसके आर पार
कितने भरे हुए हम दोनों ;
बस मौन-मुग्ध इंतजार
एक हल्के से हवा के झोंके का
जो उस दीवार को ढ़हा दे
और छलका कर दोनों गागर का जल
हमारे अहम्- वहम् सबकुछ
उसमें बहा दे ।

7 comments:

  1. कभी कभी ये झीनी सी दीवार भी अभेद्य हो जाती है...

    बहुत कोमल भाव...
    अनु

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  2. शुक्रिया अनु जी !

    Ego के foundation पे misunderstandings के ईंट जुडते चले जाते हैं और दूरियाँ बढ़ती जाती है...

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  3. बिलकुल सही....मेरे उस कविता के ,,,मेरे शब्दों को विस्तार दिया हैआपने.... आभार

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  4. ये झीनी दीवार कितनी दुखदायी होती है कभी कभी
    बेहतरीन भाव

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  5. आपने सराहा... मेरा हृदय पुलकित हो गया...

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  6. बहुत प्यारे जज्बात

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