Saturday, 30 March 2013

मैं एक माटी की मूरत















एक मूरत थी मैं
माटी  की
सुन्दर सी, सलोनी सी।
मुझे हर पल बनाया गया था,
सजाया गया था तेरे लिए।
थी अमानत मैं कुम्हार की
या कहो जिम्मेदारी थी
.. फिर उस दिन जाने क्या हुआ
की अब से मैं तुम्हारी थी।
(शायद मुझपे मालिकाना हक बदल गया था। )
मैं कोई खुश तो नहीं थी
आशंकित थी,
पर एक संतोष था-
की शायद तुम्ही मुझमे
प्राण फूंक दो....

     *    *     *
तुम लेकर आये मुझे
अपने मंदिर में
मुझे विराजित किया
एक सुसज्जित आसानी पर।
- मुझमे प्राण-प्रतिष्ठा भी किया।

फिर सबने एक एक कर
आरोपित किये मुझमे
अपने अपने भगवान-
अपनी अपनी इच्छानुसार
और आगे से मुझे बनना पड़ा
सबके लिए भगवान।
सबको मिलो उसी रूप में
जैसा वे चाहते हैं ।
सबकी जिम्मेदारी
अब आगे से मेरी थी।
पर अधिकार मेरा कहाँ था
अपने उस आसानी पर भी,
उससे उतरने का तो मतलब था
मेरा पदच्युत होना ।
मुझसे तो वांछित था
की मैं प्रसाद- धूप- बत्ती
आदि जो भी मिले
ग्रहण करती रहूँ
और सब का भला करती रहूँ।


हाँ! अब मेरे पास शक्ति थी
मैं कुछ भी कर सकती थी
जब तक की उससे
हर किसी का भला हो
और मुझे न उतरना पड़े
अपने उस सुसज्जित आसनी से।
पर अब भी मेरे पास
अपनी कोई इच्छा कहाँ थी
- मैं अब भी वही मूरत थी माटी की


....प्राण-प्रतिष्ठा करके
मुझे भगवान बनाना तो
तुम्हे और तुम्हारे समाज को स्वीकार था
पर मेरे अपने प्राण के अस्तित्व को
स्वीकार करने की हिम्मत
न तुझमे थी
न तुम्हारे परिवार के किसी सदस्य में ।

Monday, 25 March 2013

द्वेष रहित सपनों का संसार (A conflict-less world of dreams )!




























न बंधने दें 
रंगों को 
रूढ़ प्रतीकों में-
गोरा - सांवला 
उजला - काला 
भगवा - हरा 
लाल - नीला 
या और भी कई ।
सबको मिलने दें आपस में 
मुक्त होकर 
उनके प्रतीकों के द्वन्द से ।

जरूरी नहीं है 
कि वो मिलें इस तरह 
कि हो जाएँ एकरूप,
क्योंकि इस तरह जन्म लेगा
फिर कोई नया रंग
अपने नए प्रतीकों- 
सिद्धांतों में रूढ़ होकर 
अपने खुद के 
पूर्वाग्रहों के संग ।


उन्हें मिलनें दें आपस में 
अक्षुणण रखते हुए अपनी विशेषताएं 
ताकि वो मिलकर 
एक खूबसूरत संसार बनाएं-
तितली के परों जैसा 
मोर के पंख जैसा 
या बारिश के बाद के 
इन्द्रधनुष जैसा 
   - द्वेष रहित सपनों का संसार !




These colours -
'Black-White & Gray
Saffron & Green
Red & Blue
Pink & Violet
And many others'
- Don't keep them
In separate boxes
Symbolizing
Different conflicting perspective.
- Don't confine them
To limited boundary (of any bloc)


Let them flow freely
To mingle within themselves.
But be cautious-
Don't pour them all
In a new container
As again they will be stiffed
As a new symbol
With its own hue and saturation.

Let Them combine together
With all There essence unaltered
To form a Picturesque world
Consisting of vibrant colours
Like - wings of butterfly
Like - feather of peacock
Like - a rainbow
In rain-washed sky
- A conflict-less world of dreams !




Sunday, 17 March 2013

वो लम्हा














उस लम्हे पे
वक़्त तो ठहरा था 
कुछ पल के लिए ; 
पर हम ही आशंकित हो-
उसके भीतर छुपी संभावनाओं से,
उसे अपना न सके ।
  

Time waits for a while
but we diffidently
run away
instead of
kissing ahead our way.



Wednesday, 6 March 2013

कहो आओगे ?









आज आवाज दूँ तुमको-
तो कहो आओगे ?


जब तलक मैं
तेरे साथ चलता रहा
तूने सब ठोकरों में
सम्हाला मुझे ।
तूने मेरे लिए
कितने जोखिम लिये
और सब मुश्किलों से
निकाला मुझे ।

कैसी आँधी चली !
क्या बवंडर उठा !
दूर मुझसे हुआ
वो सहारा मेरा ।
डूबता जा रहा हूँ,
बचाओगे ?
आज आवाज दूँ तुमको
तो कहो आओगे ?
   *    *    *

थी वो गलती मेरी
दूर तुझसे हुआ
क्या पता किन शहों में
मैं भूला रहा ।
किस गली किस डगर पे
मैं घुमा किया

मेरी मंजिल कहीं
और मैं था कहाँ
किस नशे में न जाने
मैं चलता रहा ।
आज दूर आ गिरा
इस बियाँबान में ।
कह दो,
हाँथों से अपने उठाओगे ?
आज आवाज दूँ तुमको
तो कहो आओगे ?
   *    *    *

मैं था भटका हुआ
मैंने समझा नहीं
उस तेरे प्यार को
तेरे फटकार को ।
  
छूटा सबकुछ मेरा
पास कुछ भी नहीं
मेरी हस्ती का हर
दायरा खो गया ।

आज मैं हूँ जहाँ
संग कोई नहीं
टूटे रिश्ते सभी
छूटे साथी सभी
क्या मुझे
अपने सीने-लगाओगे ?
आज आवाज दूँ तुमको
तो कहो आओगे ?
    * - * - *





     

Friday, 1 March 2013

तेरा विस्तार

हर तरफ विस्तार तेरा
यह सकल संसार तेरा ।
तेरी ही हैं सब दिशाएं
क्षितिज के उस पार तेरा ।।


सूर्य तेरा, चन्द्र तेरा
नक्षत्रों का हार तेरा ।
नदी पर्वत सब तुम्हारे
प्रकृति का श्रृंगार तेरा ।।


भ्रमर का गुंजार तेरा
हर  कली का प्यार तेरा ।
चहकते कलरव तुम्हारे
आद्र आर्त पुकार तेरा ।।


जगत के हर भाव तेरे
और हर व्यवहार तेरा ।
तूँ बसा हर जीव में है
तत्व का हर सार तेरा ।।


विश्व भर में गंध-वाणी-
रूप है साकार तेरा ।
मन सतत झंकार तेरा
आत्म शून्य अपार तेरा ।।


हर तरफ विस्तार तेरा
यह सकल संसार तेरा ।।।

   *    *    *

Yours is the expanse
Everywhere
And the whole world is yours.
Your wings take over
All the directions
And beyond the horizon is your limit.
Sun and moon
are your reflections
And your parts are
all the celestial bodies.
Oceans and mountains
are your dimensions
And for you the nature ornate.
Bumblebees buzz
to articulate your voices
And plants bloom
to reveal your beauty.
Belongs to you-
The playful chirps of birds
And prayers of helpless as well.
With you originates
Every action
and every emotion.
All the sound-smell-and form
Are yours
Be it alive or inanimate.
The perpetual astral bell Sounds
within your silence.
And your soul belongs to
Ubiquitous consciousness.