Friday, 20 December 2013

दिल की भाषा











तुम भोले हो
दर्द से अनजान
दिल की भाषा क्या जानो ।

दिल दर्द में पक कर
समझने लगता है दिलों की भाषा-
सुन पता है
दिलों में स्पंदित दर्द;
सम्प्रेषित कर पाता है
अपनी विश्रान्त सहानुभूति-
              कभी आँखों के माध्यम से
              तो कभी एक हलके से स्पर्श के सहारे;
कभी उतर जाता है किसी दिल में
बिना किसी माध्यम के
या विस्तृत हो कर समाहित कर लेता है
किसी दिल को अपने दायरे में
और अपना लेता है उसे उसे
उसके दर्द के साथ ।   

Saturday, 2 November 2013

व्यक्तिगत वसीयत



















ऐसे गुजरे वो दिन
जिस दिन मुझे जाना हो -
कि तेरी एक मुस्काती सी छवि
सारे दिन फंसी रहे
मन के किसी कोने में  ।

कुछ बातें कर लूँ अपनों से;
दुआ कर सकूँ उनके खैरियत की।

न कोई जल्दी हो
यहाँ से जाने  की ,
और न कोई टीस
यहाँ कुछ छूट जाने की ।

हाँ, उस रोज जरूर देख सकूँ
सूरज को उगते हुए ;
 जरूर सुने हो मैंने
पंछियों  के किसी झुंड  की चहचहाहट ;
जरूर बतियाया होऊं मैं
किसी भोले नटखट बचपन से;
          
          और पानी दे सकूँ मैं आखिरी बार
गमले में खुद से लगाये किसी पौधे में ;
           और फिर सो जाऊं
एक हल्की  सी मुस्कान के साथ।

           क्या हर दिन ऐसे ही नहीं गुजर सकता ?
क्योंकि कौन जाने  कब चलना पड़ जाये ।  


Friday, 18 October 2013

आनंद और दर्द

हाँ, आज तुम बाहें पसारे
आनंद ले लो
बारिश की बूंदों में भींगने का;
कल जब तुम्हारे सर पे
छत नहीं होगी, तो पूछूँगा -
कि भीगते बिस्तर पे
कैसे मजे में गुजरी रात !

आज देख लो ये रंगीन नजारे
ये बागीचे, ये आलीशान शहर;
कल जब लौट के आने को
कोई ठिकाना नहीं होगा, तो पूछूँगा-
चलो कहाँ चलते हो घूमने !

आज तुम झंडा बुलंद कर लो
सम्पन्नता प्रचालित न्याय नीति का;
कल जब पेट में
नहीं होगा अन्न का दाना, तो पूछूँगा-
कहो कब तक उल्लुओं-कौवों को
उडाने दोगे अपना निवाला !


Wednesday, 16 October 2013

आसन्न खतरा


















अंधेरों की सनसनाहट
संगीत नही,
भयानक शोर
जो फाड़ डाले कान के परदों को -
अचानक थम जाती है ।

 …शायद कोई आसन्न ख़तरा
घुल रहा है हवाओं में ।

… के शायद कोई नाग निकल पड़े झाड़ियों से;
या और कुछ ।

… के शायद मुझे भी चुप हो जाना चाहिए ;
इस विलाप को बंद करके
सतर्क हो जाना चाहिए
उस आसन्न खतरे के प्रति। 
 

Wednesday, 18 September 2013

हिंसा का बुल्डोज़र

बीच चौराहे पे पड़ी थी उसकी लाश
जो चीख़ -चीख़  बताए जा रही थी  हत्यारों के नाम।
लोगों में आक्रोश था;
चारों ओर  भयानक शोर था;
कोई नहीं सुन पा रहा था  वो भयानक चीख
जो बेतहासा भागदौड़ में दब गई थी।

चप्पे-चप्पे में दहशत और वहशत फैलता जा रहा था
और लाशों की संख्या बढ़  रही थी
उनकी भी वही चीख-
उसी तरह आक्रोश के बुल्डोज़रों तले रौंदी गयी।

यह बुल्डोज़र पुरे शहर को रौंदता रहा
गली- गली , चप्पे - चप्पे
कोई घर अछूता न बचा
हजारों लाशें अब एक साथ चीख रही थीं -
हमें किसी हिन्दू या मुसलमान ने नहीं मारा,
किसी क्षेत्र विशेष के लोगों ने,
या भाषा विशेष, जाति  विशेष,
या किसी वाद के समर्थकों ने हमें नहीं मारा ,
हमारी हत्या कराती हुई  जो हुजूम गुजरी
उसमे वही  गिने चुने चेहरे थे-
कहीं डर, कहीं स्वार्थ,
कहीं ईर्ष्या, तो कहीं लोभ,
कही घमंड और मदान्धता
और कहीं बदले की कुत्सित भावना ,
इनसे से मिलते-जुलते और भी कुछ चेहरे।

पर अब सुनने वाला कोई न बचा था
और बुल्डोज़र  बढ़ चुका  था किसी दूसरे शहर की ओर। 
हिंसा का बुल्डोज़र 

Monday, 5 August 2013

- माँ! जगाओ राम को

माँ! जगाओ राम को
जग छा रही रजनी अँधेरी ।
अतल-तम संधान हेतु
फूंक दे रण-बिगुल, भेरी॥
दीप नयनों में जला दे,
चेतना में ओज भर दे।
काट दे तम-पाश को,
फिर भोर-नव को एक स्वर दे ॥
सड़ित-लोकाचार, जड़ता
व्यूह घिर निश्चल पड़ा जग।
प्रात-नव में नव-धरा पर
नव किरण संचार कर दे॥  …

व्यक्ति-व्यक्ति की महत्ता
धूमिल है, निश्तेज श्रम है।
ज्ञान है पूंजी की दासी ,
अर्थ सत्, सब अन्य भ्रम है ॥
स्वार्थ की सत्ता चतुर्दिक,
हिंस्र है सामर्थ्यशाली ।
निर्धन, भुभुक्षु समाज
 सबके हाँथ खाली, पेट खाली ॥
स्वार्थ के हाँथों हृदय,
मष्तिष्क और विवेक अपहृत ।
मूल्य सब मृत-प्राय हैं,
है बंधुता-सद्भावना मृत ॥.… 

सौर-शौर्य जगा, हृदय में
लक्ष्य स्थापना कर दे ।
बाहु में बल, चित्त में
उत्कर्ष का संकल्प भर दे॥
प्राणी-मात्र सामान हो,
सबका सकल उत्थान हो,
सर्वजन हित, सर्वजन सुख,
सर्वजन हेतु सम स्थान हो ॥
ज्ञान, शक्ति, अर्थ सब पर
सबका सम अधिकार हो।
स्नेह से सद्भावना से
पूर्ण  हर व्यवहार हो ॥.…

ताप हरने  इस धरा के
नीर-निज करुना बहा दे।
शुष्क प्राण विराट जग में
हरित अभिलाषा जगा दे ॥

चेतना में ओज भर दे। 
दीप नयनों में जला दे॥

 - माँ! जगाओ राम को ।
हर नयन में है सो रहा जो
नींद बन कर ।।




  

Thursday, 18 July 2013

मुक्त-जीवन

मेरे अंक मे
तेरे प्यार की थाती नहीं
मेरे कल का सहारा नहीं
एक नया जीवन है
जो मुक्त है
भूत की परछाइयों से
और भविष्य की अपेक्षाओं से।


Thursday, 11 July 2013

झीनी सी दीवार

http://marciokenobi.files.wordpress.
com/2012/03/6369830-md.jpg
एक झीनी सी दीवार
जिसके आर पार
कितने भरे हुए हम दोनों ;
बस मौन-मुग्ध इंतजार
एक हल्के से हवा के झोंके का
जो उस दीवार को ढ़हा दे
और छलका कर दोनों गागर का जल
हमारे अहम्- वहम् सबकुछ
उसमें बहा दे ।

Thursday, 4 July 2013

ऊँचाई या दूरी ?

http://www.awesomegalore.com/wp-
content/uploads/images/2012/
june/lava_meets_water.jpg 

धरती
चाहे आग में जले
या डूब मरे
चाँद की मुस्कराहट कभी कम नहीं होती ।
क्या इसलिए कि वो है हमसे
इतनी दूरी पर -
जहाँ से देख सकता है
हमारा भूत भविष्य वर्तमान
सब एक साथ एक विस्तृत परिप्रेक्ष्य में-
एक दार्शनिक-आध्यात्मिक ऊँचाई ?
या महज एक आडंबर
छिपाने के लिए
हमसे अपनी भौतिक-भावनात्मक दूरी ?



http://images2.layoutsparks.com/1/
165220/misty-moon-clouds-water.jpg 

Sunday, 23 June 2013

प्रलय-प्लवन




चुप!
अब केवल मैं बोलूँगी ।

बहुत हो गया कहना-सुनना 
- सुन मेरी अब सिंह-गर्जना ।

"खड़े-खड़े बस बातें करना"
 "सिर से पाँव स्वार्थ में डूबे 
धरे हाँथ पर हाँथ विचरना "

-खिन्न मंद मैं हँस देती थी ।
मगर बाँध अब टूट चूका है-
अट्टहास मम सुन कराल यह 
तेरे पाँव उखड़ जाएँगे ;
खिसकेगी कदमों के नीचे 
धरती, अम्बर भी उलटेगा ; 
प्रलय-प्लवन हहरेगी मग में 
भागो कहाँ किधर भागोगे।

शांति ?
शांति नहीं अब, 
दया नहीं अब,
क्षमा नहीं, वात्सल्य नहीं अब;
अपना हक़, अपनी निर्मलता
माँगे मुझको मिली नहीं जब ।
मेरे जीवन की धारा को 
जीवित नहीं जब तुमने छोड़ा ।
अब इस विप्लव के प्रवाह को 
शिव भी स्वयं न रोक सकेगा ।
मद! लोलुपता!! अकर्मण्यता!!!
का हिसाब तुम अब पाओगे । 

भविष्य-
नहीं जानती मैं बस 
इतना मुझको अभी ज्ञात है 
मुझसे इतर भविष्य नहीं है 
ना कल था, न वर्तमान है ।
जीवन-क्षय की असह वेदना 
पीड़ित मुझको भी करती है 
जीवन-संतुलन के हित यह
द्रवित-अस्मिता की उफान है ।

गुंथा हुआ है एक सूत्र में 
जीवन का हर एक रूप यह 
गर तोड़ोगे इस तंतु को 
कंकर हो जीवन बिखरेगा 
नाश - नाश 
बस दारुण दुःख ही 
इसका पारितोषक पाओगे ।
  


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Disclaimer: My intention is not to offend those affected by such a disaster. I prey for their well being and recovery. This poem is concerning about reason behind such disaster.
  






Saturday, 25 May 2013

बावरा-मन


(आज सुबह से ही वह कुछ अजीब सा महसूस कर रहा था- कुछ बँटा-बँटा सा। पहले से चली आ रही उदासी भी, और उसको झुठलाती हुई, उसको चीड़ती हुई एक ताजगी भी। आइने में भी उसने ख़ुद को कुछ बदला हुआ सा पाया। अचानक आइने में उसके दो-दो अक्श उभर आये- वह मू्क दर्शक बना खड़ा रहा । दोनो अक्श, एक हारा हुआ और दूसरा जीतने को उत्साहित, बारी-बारी से अपना पक्ष रख रहे थे- )


1.

अधूरी राहों पे

अधूरे मन से

यूँ ही मैं........ चलता रहा ।


कहीं चल..... रे मन बावरे
सपनों..... का वो गाँव रे
जहां हो..... घनी छाँव रे
न जले..... जहाँ पाँव रे ।

वहीं चल..... रे मन बावरे .............

2.

अधूरी ठोकरें

अधूरे सहारे

मैं गिरता रहा........ सम्हलता रहा ।


मंजिलें..... आज ओझल तो क्या
रास्ते..... आज बोझिल तो क्या
रुकना.......... ना तूँ राह में
आगे तूँ ........ बढ़ा पाँव रे ।

चला - चल..... रे मन बावरे .............
3.

अधूरा सा ख्वाब

अधूरी नींदों 

मेंजाने क्यूँ........ पलता रहा ।


बस था........ वो इक ख्वाब रे
हो गया.......... जो बर्बाद रे
रह गया........ जो पीछे कहीं
क्यों करे........ उसे याद रे ।

चल ना ..... रे मन बावरे .............


4.

अधूरा ये सावन

किस अधूरी आग में

धुँआ-धुँआ........ जलता रहा ।


तेरे मन........ की वो बात रे
कोई हो........ तेरे साथ रे
तुझपे........ हो जिनको यकीं
तेरे हों........ जो दिन रात रे ।

वहीं चल..... रे मन बावरे .............

5.

अधूरा ये जीवन

अधूरी ख्वाहिशें लिये

बस यूँ ही........ ढ़लता रहा ।


पाएगा ........ तुँ मंजिल कभी
हसरतें........ होंगी पूरी सभी
जिन्दगी........है ये सौगात रे
खुद खुदा........ है तेरे साथ रे ।

चल दे ..... तूँ मन बावरे .............

_________________________________________________________

( और उसे लगा कि सच ‌में उसका खुदा उसे नयी स्फूर्ती के साथ आगे बढ़ने के लिये प्रेरित कर रहा है | )

Friday, 17 May 2013

यादों के भँवर- Whirling memories

आ !
आज  हम मिलकर रो लें, 
जो यादों के भँवर ने 
हमें एक दूसरे के इतना पास ला छोड़ा है । 

डूबते उतरते हुए, इस भँवर में,
कभी तो आ जाएगा हमें तैरना-
ताकि हम तय कर सकें सफ़र 
अपने वजूद से तेरे वजूद के बीच का ...

         *    *    *















याद है ?
जब एक पुल हुआ करता था 
हमारे वाजूदों को जोड़ता हुआ 
जिस पर बैठे रहते थे हम दोनों 
कभी जरा मेरी ओर 
तो कभी जरा तेरी ओर-
और उस पुल के नीचे से बह जाया करता था 
जाने कितना वक़्त 
शान्त निश्चल पानी की तरह ...

         *     *     *

फिर याद है ?
वक़्त की लहरों में एक बवंडर सा उठा था 
जिसने पुल के साथ -साथ 
ऊँचे आसमानों तक फैले 
हमारे इंद्रधनुषी ख्वाबों को भी 
चकनाचूर कर दिया  
और हम धम्म से आ गिरे थे 
यादों के भँवर में।

फिर घिरे हुए उस भँवर में 
जाने कब वक़्त ने 
हमें अपनी लहरों में बहाते हुए 
अपने-अपने वजूद पर लाकर छोड़ दिया ...

          *    *    *

वक़्त अब भी गुजरता था 
पर हम तट पे खड़े थे 
तटस्थ,
सिमटे हुए अपने वजूद में
और आँखे गड़ी थीं 
गुजरते हुए वक़्त के उस पार 
तेरे वजूद की ओर।

कई बार तैर कर पार करना चाहा  
वक़्त की इस दरिया को
पर यादों के वो भँवर-
साँसें उखड़ जाती थीं!
हम डूबने लगते थे! ...

और आज उसी भँवर ने जो ला छोड़ा है हमें 
एक दूसरे के कहीं आस- पास 
तो क्यों ना हम मिल कर रो लें 
की कभी तो आ जायेगा हमें तैरना
और तय कर सकेंगे सफ़र 
अपने वजूद से तेरे वजूद के बीच का  ... 
  




Let our self
Be drowned into tears
As whirls of memories
Brought us together…

Some day
We will learn to swim
Through these memories
To cross this river
Between our existence.

     *    *    *

Once
There was a bridge
Connecting our beings.
Sitting on which
Feeling like sometimes more me
And sometimes more you.
We used to fantasize
Life like a rainbow
While beneath that
A lot of time passed
Calmly like water…

   *    *     *

And then
A  storm of vicious misfortune
Broke that fascinating spell.
And we fall into
Vortex of memories
Which ferried us to
Banks of our own existence.

   *    *    *

Time was still passing
But we ware untouched by its flow..
Yearning  to mingle with your being
Across the vast river of time.

Many a times
I wanted to cross this river
But those vortex of memories
Swirling around our being
Started drowning me…

And now that
Whirling with memories
We came so close to each others being
Let our self
Be drowned into tears.

That same day
We will learn to swim
Through these memories
To cross this lapse
Between our existence...

Tuesday, 7 May 2013

। प्रहसन ।

 
 पर्दा अभी उठा नहीं था । पर्दे के पीछे से आवाजें आ रही थी -
     " भौं ... भौं ...       भौं ... भौं ...!!! "
           " भौं ... भौं ...       भौं ... भौं ...!!! "  .......

      आवाजें धीरे-धीरे नजदीक आती हैं और अंततः पर्दे  के पास तक पहुँच जाती हैं । पर्दा उठता है । मंच पे हल्की ग्रे लाईट है । वीरान और अस्त व्यस्त शहर के किसी कोने का दृश्य है । कुत्तों के दो झुण्ड आमने- सामने एक दूसरे पर भूंक रहे हैं-

     " भौं ... भौं ...       भौं ... भौं ...!!! "
     " भौं ... भौं ...     भौं ... भौं ...!!! "   -----1, 2, 3, 4,......

       
तभी ऊपर से मांस का एक लोथड़ा आ कर उनके बीच गिरता है । दोनों झुंडों का भूंकना बंद हो जाता है और वो एक साथ उस लोथड़े पर टूट पड़ते हैं । छीना-झपटी शुरू हो जाती है। जिसे जितना टुकड़ा मिला वही ले कर वो झुण्ड से थोड़ा अलग आ जाता है । शांति से अपने टुकड़े को हजम करने के बाद वह फिर से अपने झुण्ड में आ जाता है । थोड़ी देर बाद जब सभी अपने अपने हिस्से ख़त्म करके अपने-अपने झुण्ड में वापस आ चुके होते हैं , एक कुत्ता जिसके हिस्से में हड्डी आयी थी, अब भी उसे चबाने में मस्त था । दोनों झुंडों के सभी कुत्तों की आँखें उसी पर टिकी है । भूँकने की आवाज फिर से शुरू होती है। पहले एक दो शुरू करते हैं फिर धीरे -धीरे सभी मिलकर उस एक पे भूँकने  लगते हैं ।

         "भौं ... भौं !!.       भौं ... भौं ... भौं !!!      भौं ... भौं ...       भौं ... भौं ...!!!! "

         थोड़ी देर बाद वह कुत्ता हड्डी वहीँ छोड़ अपने झुण्ड में शामिल हो जाता है । कुत्तों के दोनों झुण्ड फिर से एक दूसरे पर भूँकने  लगते हैं ।


           " भौं ... भौं ...       भौं ... भौं ...!!! "
                 " भौं ... भौं ...       भौं ... भौं ...!!! "   -----1, 2, 3, 4,......

         पर्दा गिरता है । भूँकने आवाजें अब भी आ रही है । फिर ये आवाजेंधीरे-धीरे दूर जाती हुई नेपथ्य में विलीन हो जाती है। 

Saturday, 6 April 2013

तुम आते..


वह नॉर्मली पार्टियों में नहीं जाता, बड़ा अनकम्फर्टेबल फील करता है । आज ही पता नहीं कितने  दिनों बाद दोस्तों के साथ पार्टी में आया था । दोस्त क्या! colleague थे, अचानक ज़िद कर बैठे और वह मना नहीं कर पाया।  वह खुद भी आखिर इस trauma से तो निकलना ही चाहता था। आखिर कब तक यूँ दुनियां से भागता फिरता...    यह रोहित की बर्थडे पार्टी थी । यही एक है जिससे वह इधर कुछ बोल-चाल लेता है। बात है की रोहित अपने में मस्त रहता है, ज्यादा इधर-उधर से उसे कोई मतलब नहीं। किसी के लाइफ में में ज्यादा झांकने की कोशिश नहीं करता । इसी कारण से शायद उसके चारों तरफ जो एक दीवार बन गयी है, वो रोहित अपने लिए खतरा नहीं मानती।

खैर! सारे लोग पार्टी में व्यस्त थे। वह भी रेगुलर कर्ट्सी के साथ सबसे मिला, रोहित को wish किया और धीरे-धीरे टेरिस पे आ गया। वहां एक दो चेयर लगी थी पर था कोई नहीं। अन्दर से शोर गुल की आवाजें आ रही थी । साथ में डी जे की आवाज भी आ रही थी-

गल मेरी सुन ले सोहने
बस इतना कहना है 
दिल देना है ये तुझको 
लव तुझसे करना है......

आती क्या ?
बता !
चल अपने नाल...

पर वह ज्यादा देर तक ऐसी जगहों पर रुक कहाँ पता है ।


















अब तक तो वह कहीं और जा चुका था । जहाँ शायद वो ( कौन ये तो मुझे भी नहीं पता ) उसके साथ तो नहीं थी पर उसकी आवाज शायद उस तक पहुँच रही थी -  

तुम आते 
जीवन मुस्काता 
होतीं साथ बहारें,
अपना भी
जग रौशन होता 
छंट जाते अंधियारे...

तेरी राहें
तकती आँखें
कबसे आस लगाये,
आओ हम 
तुम मिलकर प्यारी
दुनियां एक बनायें

बिन तेरे
जीवन सूना ये
हर पल तुझको पुकारे 
तुम आते 
जीवन मुस्काता 
होतीं साथ बहारें...


अन्दर से अब भी आवाजें आ रहीं थी-


from- article.timesofindia.indiatimes.com














गल्ला ना कर तूं छोरे 
देखी है तेरी जात 
दिल देना-वेना क्या है
जानूं तेरी हर बात...

ये कुड़ियां
समझतीं हैं 
तेरी हर चाल..... 

और वो अब भी पता नहीं किससे बातें कर रहा था-

समझाते
हम खुल कर तुमको
अपने दिल की बातें,
इक मौका
जो हमको देते 
लौट के जो तुम आते ...

देखो यूँ 
कब तक रूठोगे 
अब तो मान भी जाओ,
मेरी हर
इक साँस पुकारे
तुम आओ - तुम आओ...

भूल गए
यूँ छोड़ के मुझको 
बोलो किसके सहारे,
तुम आते 
जीवन मुस्काता 
होतीं साथ बहारें...... 

Saturday, 30 March 2013

मैं एक माटी की मूरत















एक मूरत थी मैं
माटी  की
सुन्दर सी, सलोनी सी।
मुझे हर पल बनाया गया था,
सजाया गया था तेरे लिए।
थी अमानत मैं कुम्हार की
या कहो जिम्मेदारी थी
.. फिर उस दिन जाने क्या हुआ
की अब से मैं तुम्हारी थी।
(शायद मुझपे मालिकाना हक बदल गया था। )
मैं कोई खुश तो नहीं थी
आशंकित थी,
पर एक संतोष था-
की शायद तुम्ही मुझमे
प्राण फूंक दो....

     *    *     *
तुम लेकर आये मुझे
अपने मंदिर में
मुझे विराजित किया
एक सुसज्जित आसानी पर।
- मुझमे प्राण-प्रतिष्ठा भी किया।

फिर सबने एक एक कर
आरोपित किये मुझमे
अपने अपने भगवान-
अपनी अपनी इच्छानुसार
और आगे से मुझे बनना पड़ा
सबके लिए भगवान।
सबको मिलो उसी रूप में
जैसा वे चाहते हैं ।
सबकी जिम्मेदारी
अब आगे से मेरी थी।
पर अधिकार मेरा कहाँ था
अपने उस आसानी पर भी,
उससे उतरने का तो मतलब था
मेरा पदच्युत होना ।
मुझसे तो वांछित था
की मैं प्रसाद- धूप- बत्ती
आदि जो भी मिले
ग्रहण करती रहूँ
और सब का भला करती रहूँ।


हाँ! अब मेरे पास शक्ति थी
मैं कुछ भी कर सकती थी
जब तक की उससे
हर किसी का भला हो
और मुझे न उतरना पड़े
अपने उस सुसज्जित आसनी से।
पर अब भी मेरे पास
अपनी कोई इच्छा कहाँ थी
- मैं अब भी वही मूरत थी माटी की


....प्राण-प्रतिष्ठा करके
मुझे भगवान बनाना तो
तुम्हे और तुम्हारे समाज को स्वीकार था
पर मेरे अपने प्राण के अस्तित्व को
स्वीकार करने की हिम्मत
न तुझमे थी
न तुम्हारे परिवार के किसी सदस्य में ।

Monday, 25 March 2013

द्वेष रहित सपनों का संसार (A conflict-less world of dreams )!




























न बंधने दें 
रंगों को 
रूढ़ प्रतीकों में-
गोरा - सांवला 
उजला - काला 
भगवा - हरा 
लाल - नीला 
या और भी कई ।
सबको मिलने दें आपस में 
मुक्त होकर 
उनके प्रतीकों के द्वन्द से ।

जरूरी नहीं है 
कि वो मिलें इस तरह 
कि हो जाएँ एकरूप,
क्योंकि इस तरह जन्म लेगा
फिर कोई नया रंग
अपने नए प्रतीकों- 
सिद्धांतों में रूढ़ होकर 
अपने खुद के 
पूर्वाग्रहों के संग ।


उन्हें मिलनें दें आपस में 
अक्षुणण रखते हुए अपनी विशेषताएं 
ताकि वो मिलकर 
एक खूबसूरत संसार बनाएं-
तितली के परों जैसा 
मोर के पंख जैसा 
या बारिश के बाद के 
इन्द्रधनुष जैसा 
   - द्वेष रहित सपनों का संसार !




These colours -
'Black-White & Gray
Saffron & Green
Red & Blue
Pink & Violet
And many others'
- Don't keep them
In separate boxes
Symbolizing
Different conflicting perspective.
- Don't confine them
To limited boundary (of any bloc)


Let them flow freely
To mingle within themselves.
But be cautious-
Don't pour them all
In a new container
As again they will be stiffed
As a new symbol
With its own hue and saturation.

Let Them combine together
With all There essence unaltered
To form a Picturesque world
Consisting of vibrant colours
Like - wings of butterfly
Like - feather of peacock
Like - a rainbow
In rain-washed sky
- A conflict-less world of dreams !




Sunday, 17 March 2013

वो लम्हा














उस लम्हे पे
वक़्त तो ठहरा था 
कुछ पल के लिए ; 
पर हम ही आशंकित हो-
उसके भीतर छुपी संभावनाओं से,
उसे अपना न सके ।
  

Time waits for a while
but we diffidently
run away
instead of
kissing ahead our way.



Wednesday, 6 March 2013

कहो आओगे ?









आज आवाज दूँ तुमको-
तो कहो आओगे ?


जब तलक मैं
तेरे साथ चलता रहा
तूने सब ठोकरों में
सम्हाला मुझे ।
तूने मेरे लिए
कितने जोखिम लिये
और सब मुश्किलों से
निकाला मुझे ।

कैसी आँधी चली !
क्या बवंडर उठा !
दूर मुझसे हुआ
वो सहारा मेरा ।
डूबता जा रहा हूँ,
बचाओगे ?
आज आवाज दूँ तुमको
तो कहो आओगे ?
   *    *    *

थी वो गलती मेरी
दूर तुझसे हुआ
क्या पता किन शहों में
मैं भूला रहा ।
किस गली किस डगर पे
मैं घुमा किया

मेरी मंजिल कहीं
और मैं था कहाँ
किस नशे में न जाने
मैं चलता रहा ।
आज दूर आ गिरा
इस बियाँबान में ।
कह दो,
हाँथों से अपने उठाओगे ?
आज आवाज दूँ तुमको
तो कहो आओगे ?
   *    *    *

मैं था भटका हुआ
मैंने समझा नहीं
उस तेरे प्यार को
तेरे फटकार को ।
  
छूटा सबकुछ मेरा
पास कुछ भी नहीं
मेरी हस्ती का हर
दायरा खो गया ।

आज मैं हूँ जहाँ
संग कोई नहीं
टूटे रिश्ते सभी
छूटे साथी सभी
क्या मुझे
अपने सीने-लगाओगे ?
आज आवाज दूँ तुमको
तो कहो आओगे ?
    * - * - *





     

Friday, 1 March 2013

तेरा विस्तार

हर तरफ विस्तार तेरा
यह सकल संसार तेरा ।
तेरी ही हैं सब दिशाएं
क्षितिज के उस पार तेरा ।।


सूर्य तेरा, चन्द्र तेरा
नक्षत्रों का हार तेरा ।
नदी पर्वत सब तुम्हारे
प्रकृति का श्रृंगार तेरा ।।


भ्रमर का गुंजार तेरा
हर  कली का प्यार तेरा ।
चहकते कलरव तुम्हारे
आद्र आर्त पुकार तेरा ।।


जगत के हर भाव तेरे
और हर व्यवहार तेरा ।
तूँ बसा हर जीव में है
तत्व का हर सार तेरा ।।


विश्व भर में गंध-वाणी-
रूप है साकार तेरा ।
मन सतत झंकार तेरा
आत्म शून्य अपार तेरा ।।


हर तरफ विस्तार तेरा
यह सकल संसार तेरा ।।।

   *    *    *

Yours is the expanse
Everywhere
And the whole world is yours.
Your wings take over
All the directions
And beyond the horizon is your limit.
Sun and moon
are your reflections
And your parts are
all the celestial bodies.
Oceans and mountains
are your dimensions
And for you the nature ornate.
Bumblebees buzz
to articulate your voices
And plants bloom
to reveal your beauty.
Belongs to you-
The playful chirps of birds
And prayers of helpless as well.
With you originates
Every action
and every emotion.
All the sound-smell-and form
Are yours
Be it alive or inanimate.
The perpetual astral bell Sounds
within your silence.
And your soul belongs to
Ubiquitous consciousness.

Saturday, 23 February 2013

झील और पत्थर


अभी-अभी सुनीता रूम से बाहर गई थी की मैं रूम में आया, देखा टेबल पर एक दो पुरानी  कॉपियाँ पड़ी थी।  एक कॉपी से एक फ़ोटो बाहर झाँक रहा  था।  मैंने फ़ोटो  निकालने के लिए कॉपी खोला तो पहचाने से अक्षरों में कुछ लिखा था .....


दो पल की मुलाकात,
और
वो मुझमे उतर गया
झील में गिरे
किसी पत्थर की तरह ;

फैलते रहे मेरे वजूद पर
उसकी यादों के घेरे
जैसे उस झील में तरंग;

और उस पेज के साथ रखी थी मेरी वही फ़ोटो जो मैंने सगाई से पहले उसके छोटे भाई के हाँथों उसे भिजवाई थी।  मैं उन पुरानी यादों में खोने ही वाला था की तभी सुनीता कुछ बड़बड़ाती हुई अन्दर आयी-
 "जहाँ देखो मुझे ही सारी तैयारी करनी पड़ती है, ये भी नहीं की आज ही ऑफिस से थोड़ा जल्दी आ जाते ।पता  नहीं उन्हें आज का दिन याद भी है या नहीं "

अचानक मुझे देख कर वो चौंक गयी। फिर मुझे लगा वो कुछ सिमटती सी जा रही है।  मैं गेस नहीं कर पा रहा था की वो नाराज है या शरमा रही है....         




This poem may be considered as my hindi rendering of a post by @iBeingMe
circles

Thursday, 21 February 2013

मंच से तब लौट आना


मैं चला अब
बांध के सामान अपना ;
आप आओ
मंच पर मेले लगाओ ।

आप की महफ़िल
बड़ी गुलज़ार होगी ;
है दुआ कि
आप जग में जगमगाओ ।

वक़्त आने पर मगर जो
दर्द की फ़सलें उगेंगी
काट कर उनको
कमर से बांध लेना ;
(यह खजाना साथ रखना
पर किसी को मत दिखाना )।

वक़्त जब फिर आपको
नेपथ्य के पीछे पुकारे ;
साथ ले उस दर्द को
मंच से तब लौट आना ।



*          *          *



My time's over
Come on the stage
It's whole yours.

Yours' will be

The glorious performance.
Spreading ageless delight
To each and every place.

At times
Waves of sorrow
will engulf your joy;
Let it not
Hold your way.
Unfold it and fold it
To put safely
Within your heart
Concealing from others.

When time
Takes it own tern
To call you off the stage
This parcel
Will your only belonging
And true treasure.