Saturday, 25 May 2013

बावरा-मन


(आज सुबह से ही वह कुछ अजीब सा महसूस कर रहा था- कुछ बँटा-बँटा सा। पहले से चली आ रही उदासी भी, और उसको झुठलाती हुई, उसको चीड़ती हुई एक ताजगी भी। आइने में भी उसने ख़ुद को कुछ बदला हुआ सा पाया। अचानक आइने में उसके दो-दो अक्श उभर आये- वह मू्क दर्शक बना खड़ा रहा । दोनो अक्श, एक हारा हुआ और दूसरा जीतने को उत्साहित, बारी-बारी से अपना पक्ष रख रहे थे- )


1.

अधूरी राहों पे

अधूरे मन से

यूँ ही मैं........ चलता रहा ।


कहीं चल..... रे मन बावरे
सपनों..... का वो गाँव रे
जहां हो..... घनी छाँव रे
न जले..... जहाँ पाँव रे ।

वहीं चल..... रे मन बावरे .............

2.

अधूरी ठोकरें

अधूरे सहारे

मैं गिरता रहा........ सम्हलता रहा ।


मंजिलें..... आज ओझल तो क्या
रास्ते..... आज बोझिल तो क्या
रुकना.......... ना तूँ राह में
आगे तूँ ........ बढ़ा पाँव रे ।

चला - चल..... रे मन बावरे .............
3.

अधूरा सा ख्वाब

अधूरी नींदों 

मेंजाने क्यूँ........ पलता रहा ।


बस था........ वो इक ख्वाब रे
हो गया.......... जो बर्बाद रे
रह गया........ जो पीछे कहीं
क्यों करे........ उसे याद रे ।

चल ना ..... रे मन बावरे .............


4.

अधूरा ये सावन

किस अधूरी आग में

धुँआ-धुँआ........ जलता रहा ।


तेरे मन........ की वो बात रे
कोई हो........ तेरे साथ रे
तुझपे........ हो जिनको यकीं
तेरे हों........ जो दिन रात रे ।

वहीं चल..... रे मन बावरे .............

5.

अधूरा ये जीवन

अधूरी ख्वाहिशें लिये

बस यूँ ही........ ढ़लता रहा ।


पाएगा ........ तुँ मंजिल कभी
हसरतें........ होंगी पूरी सभी
जिन्दगी........है ये सौगात रे
खुद खुदा........ है तेरे साथ रे ।

चल दे ..... तूँ मन बावरे .............

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( और उसे लगा कि सच ‌में उसका खुदा उसे नयी स्फूर्ती के साथ आगे बढ़ने के लिये प्रेरित कर रहा है | )
Images : courtsy google
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