Thursday, 23 April 2015

उलझन

लिखने को तो जी बहुत कुछ चाहता है
पर डर लगता है
कहीं शब्दों की झाड़ियों में
जिंदगी उलझ कर न रह जाए।













read this in the context of my previous blog post
Images : courtsy google
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