देख के न देखे .... मुझे क्या ।
मैं थोड़े ही इस उम्मीद में हूँ
की मुझे ढूँढती होगी कोई नजर ,
या अनायास ही चमक उठेगी किसी की नज़र
मुझे पहचान कर ,
मेरी ओर उठेगी कोई निगाह या फिर
बस यूँ ही, औपचारिकता वश .....
मुझे थोड़े इंतज़ार है
किसी जाने अनजाने पुकार का
जो मुझे बाहर खींच लाये
इस एकाकीपन से..... ।
क्यूँ मैं शामिल करना चाहूँगा
किसी को अपने ख्वाबों में
क्यूँ साझा करना चाहूँगा किसी से
अपनी खुशियाँ , अपने ग़मो -दर्द
मैं चुपचाप अकेले ही चलने का आदि हूँ अबतक
क्यूँ मैं तलाशूंगा कोई साथी , कोई हमसफ़र .....
हाँ, सब चले जाओ
मुझे अकेला छोड़ कर .....।
* * *
कसक उठती है इस दिल में तो क्या ?
तड़प उठता है ये दिल तो क्या ?
ये दिल रोता हो तो क्या ?
बंद करके इसे किसी ताबूत में ,
दफ्न कर दूंगा कहीं सीने में ....
दर्द इस दिल के
इस दिल को ही सहने होंगे,
...... क्योंकि मैं कुछ महसूस नहीं करता ।