Sunday, 27 May 2012

Hain Mere Bhi Kuchh Armaan...


नहीं , मैं कुछ  महसूस  नहीं करता ,
मुझे कैसा भी नहीं लगता ।

कोई मुझे देखे
न  देखे 
देख  के  न  देखे .... मुझे क्या ।
मैं थोड़े ही इस  उम्मीद में हूँ 
की मुझे ढूँढती होगी कोई नजर ,
या अनायास  ही चमक  उठेगी किसी की नज़र 
मुझे पहचान  कर ,
मेरी ओर उठेगी कोई  निगाह या फिर 
बस  यूँ ही, औपचारिकता वश  .....

मुझे थोड़े इंतज़ार है 
किसी जाने अनजाने पुकार का 
जो मुझे बाहर खींच  लाये 
इस  एकाकीपन  से.....  ।

क्यूँ मैं शामिल  करना चाहूँगा 
किसी को अपने ख्वाबों में 
क्यूँ साझा करना चाहूँगा किसी से 
अपनी खुशियाँ , अपने ग़मो -दर्द 
मैं चुपचाप अकेले ही चलने का आदि हूँ अबतक 
क्यूँ मैं तलाशूंगा कोई साथी , कोई हमसफ़र .....
हाँ, सब चले जाओ 
मुझे अकेला छोड़ कर .....।

*     *     *
कसक  उठती है इस  दिल  में तो क्या ?
तड़प उठता है ये दिल  तो क्या ?
ये दिल  रोता  हो तो क्या ?
बंद करके इसे किसी ताबूत में ,
दफ्न कर दूंगा कहीं सीने में ....
दर्द  इस  दिल  के
इस  दिल  को  ही सहने होंगे,
...... क्योंकि मैं कुछ महसूस   नहीं करता ।


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Images : courtsy google
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