जिंदगी के नशे में \
कुछ गाता हूँ \
गुनगुनाता हूँ \
कभी चीखता चिल्लाता हूँ \
रोता रुलाता हूँ \
तो कभी हँसता हंसाता हूँ \
या कभी चादर ओढ़ कर \
चुप-चाप सो जाता हूँ…
Thursday, 11 October 2012
मन-झील के लहरों पर
तैरती हुई
एक रंगीन ख्वाबों की डिबिया
आ कर टकराई
किनारे पड़े
हकीकत के चट्टानों से;
वो सपने टूट गए
पर उनका खुशनुमा रंग
किनारों पे है बिखरा हुआ ।
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आपके विचार हमारा मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन करते हैं कृपया हमें इमसे वंचित न करें ।
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