मैं नहीं चाहूँगा
की दिल्ली मेरे रग रग में बहे
जरूरत बनकर।
मैं चाहूँगा की जैसे
यादों की खुसबू बनकर
मौके बेमौके महकते हैं
देहरादून और नागपुर।
या फिर दोस्तों के निश्चिन्त ठहाकों की तरह
जैसे कानों में कभी कभी गूंज जाता है हैदराबाद।
वैसे ही किसी भूले बिसरे गीत की तरह
मेरे पल दो पल को झनकाति हुई
गुजर जाए ये दिल्ली....
क्योंकि जरूरत और मोहोब्बत
दो अलग अलग चीज हैं
मोहोब्बत आजादी है
जबकि जरूरत गुलामी....
nice lines... :-)
ReplyDeleteCheers, Archana - www.drishti.co
मैं चाहूँगा की जैसे
ReplyDeleteयादों की खुसबू बनकर
मौके बेमौके महकते हैं
देहरादून और नागपुर।
या फिर दोस्तों के निश्चिन्त ठहाकों की तरह
जैसे कानों में कभी कभी गूंज जाता है हैदराबाद।
वैसे ही किसी भूले बिसरे गीत की तरह
मेरे पल दो पल को झनकाति हुई
गुजर जाए ये दिल्ली....
बहुत बढ़िया !!
प्रशंसनीय
ReplyDeleteआप सबों का आभार
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