सोंचता हूँ बहने दूँ मन को
इन मदमस्त हवाओं के साथ
के शायद खुद ढूँढ़ सके
कि यह क्या चाहता है।
के शायद कहीं इसके सवालों का
जवाब मिल जाये
के शायद कहीं इसके ख्वाबों को
पनाह मिल जाये
या फिर यह भूल कर
उन ख्वाबों को
उन सवालों को
रम जाये नए नजारों में।
या घूम आए पूरी दुनिया
देख आये पूरी धरती का सौंदर्य
किसी निर्लिप्त मुसाफिर कि तरह।
.... और नहीं तो
बस लौट आये ऐसे ही ,
मैं समझ लूँगा
कि इसका कुछ नहीं हो सकता।
very nice
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआप सबों का आभार ।
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