Sunday, 4 January 2015

चांदनी के नशे में

यूँ चांदनी पीते-पीते हम तुम
किस नशे में उड़ चले हैं
चाँद तक
तारों तक
तारों के एक गुच्छे से  दूसरे गुच्छे तक
कई मन्दाकनियों को पार कर
ब्रह्माण्ड के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक.…












आओ न !....
यहीं, इस मंदाकनी के किनारे
नव-तारों के बागीचे के बीचो-बीच
एक प्यारी सी कुटिया बनाते हैं।
तुम हर सुबह
मेरे केशों में सजाने को
ओस बिछे घाँस पर से
टूटे तारे चुन कर लाया करना …
मेरे केशों में
मालती के फूल से वो तारे
तुम्हे बहुत पसंद आएंगें न …

ऐसे ही किसी दिन
तुम रास्ते पर बिखरे
कुछ छुद्र ग्रह बटोर लाना
मैं उनको कूट-पीस कर
हथेलियों में मेंहँदी रचा लूँगी
और आँगन की लताओं पे लगे
रक्तिम तारों के रस से
पावों में महावर भी लगा लूँगी  ...
मेरी दोनों सूनी कलाइयों के लिए
वृहस्पति और शनि के वलय मँगवा लेना
और ध्रुव तारे का एक टीका भी बनवा देना … 
फिर उस ढलती साँझ को
सूरज की लाली से
मेरी कोरी माँग भर देना …
मुझे सदा सुहागन का आशीर्वाद देने
सप्तर्षि-गण भी आएँगें न ...


फिर उसी रात
दुग्ध मेखला में लिपटी
लाज से दोहरी
जब मैं तुम्हारे पास आऊँ
तो जुगनू सा टिमटिमाता चाँद
जो तुमने कुटिया के छत से टाँक रखा है
मेरी हथेली में रख देना …
मैं उसे तुम्हारा प्रथम उपहार मान कर
सहेज कर अपने पास रख लूँगी
ताकि चाँदनी का यह नशा
कभी न उतरे। है न …




 

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Images : courtsy google
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