Saturday 17 December 2011

kuchh to bolo!


मैं तो सदा तुम्हारे साथ हूँ ,
तुम अपनी आँखें तो खोलो ,
कोशिश तो करो तुम
मुझे देखने की , महसूस करने की .....


हवा  जो  तुझे सहला जाती है ,
वो तेरे स्पर्श को आकुल ,
मैं ही तो हूँ ;
पक्षियों की चहक  में, व्याकुल
मैं ही तो तुझे पुकार रही हूँ ;
मैं ही तो रोज आती हूँ
तुझे देखने
आसमान में
बनकर चाँद तारे.........

तुम जिन फूलों को
मेरी चोटियों में गूँथ देते थे
मैं आज उन्ही में बस कर
तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ,
की कभी तुम इधर आओ
और मैं टूट कर तुम पर बिखर जाऊं.......

पर तुम तो खोए हो कहीं शुन्य में
सारी  दुनिया को भूल कर ;
जैसे रूठे  बैठे हो |



हाँ, तुम्हे हक़ है
मुझसे रूठने का
मुझसे शिकायत करने का
तुम चाहो तो
मुझे बेवफा कहो,
गलियां दो मुझे
नफ़रत करो मुझसे........
पर यूँ सब छोड़ कर न बैठो,
कुछ तो बोलो ! .......

वरना मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाऊंगी ,
मेरी रूह तड़पती रहेगी ,
मेरा अंतस बैचैन रहेगा |


Saturday 26 November 2011

Mai Tera Hi To Hun


|  मैं  तेरा ही तो हूँ | 

सब रूठ  गए हैं मुझसे
तुम तो न रूठो;
आओ पास मेरे
मुझे अपने साये में सुलाओ;
बातें करो मुझसे
मुझे देखो
मुस्कराओ;
हलके से थपकी दो
जादू की झप्पी दो;
लिपटने दो मुझे खुद से |
धड़कनों के ताल पर बंधे हुए मेरे ये गीत
तुम्हारा स्पर्श पाते ही
अपने सारे राज
तुम पर खोल देंगे |
मुझे पता है
तुम इन्हें सहेज कर रख लोगे
सदा के लिए
अपने अन्दर
एक सच्चे साथी की तरह |

*     *    *
हाँ!
मै तुम्हारा स्पर्श चाहता हूँ
तुमसे लिपटना चाहता हूँ
तुम्हारे साये में सोना चाहता हूँ
तुम्हारे साये पे सर रख कर रोना चाहता हूँ |
पर मै मजबूर हूँ ;
दिल में कहीं डर है
दुनिया का;
कहीं दंभ है 
सभ्य होने का |
कदम ठिठक जाते हैं
तेरी और उठते ही ;
हाँथ खिंच लेता हूँ
तेरा दमन छूते ही ;
हाँ !मै डरता हूँ |
मेरा डर, मेरा दंभ
मुझे खुद होने से रोकता है |


*     *     *
इसीलिए तुम्हे खुद मेरे पास आना होगा
आखिर मै तेरा ही तो हूँ |

*      *     *

Sunday 13 November 2011

jagane se kuchh der pahale

जगाने   से  कुछ  देर  पहले 


जाने कबसे,
देखा नही - खुले  गगन को,
नजरें न फेरी- जमीं की ओर |

भूल गया-
की सूरज कब आता है,
कब जाता है,
की पंक्षी गाते भी हैं,
की फूल खिलते भी हैं,
की घाँस का स्पर्श कैसा होता है,
की कैसे बचपन
सबकुछ भूलकर रोता है,
फिर अगले ही पल खिलखिलाता हुआ भाग जाता है |

सुना नहीं -
पेड़ों के पत्तों की पुकार,
जब बुलाया था उसने
रुकने को दो पल अपने साये में;
बारिश के बूंदों की रिमझिम,
जब भिंगोया था उसने
खिड़की के शीशों को, छतों को, दीवारों को |

पता नहीं
की नदी
(जिसपर बने पुलिए से हर रोज गुजरता हूँ)
किस ओर जाती है;
की हमारे फ्लैट के बांकी  आधे हिस्से में
(जिसका दरवाजा मेरे दरवाजे के ठीक सामने खुलता है)
कौन रहता है |
*     *    *

आज जगाने से कुछ देर पहले
मै खड़ा था नदी के ऊपर बने पुलिए पर ,
पंछियों के चहक से मेरा एकांत गूंज रहा था,
मै पूरे  आकाश भर में घूम रहा था,
या फैलता जा रहा था;
तभी मुझे छुआ सूरज की लाल किरणों ने
और नीचे  एक स्मित मुस्कान के साथ
झिलमिला उठी नदी |

*   *   *

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|| -आज के मशीनी जीवन के खिलाफ एक मोर्चा .......स्वपनों  के माध्यम से || 
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Images : courtsy google
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