Monday 9 May 2016

भूटान: At the centre of talk about happiness





भूटान- हिमालय की गोद में बसा, रहस्यों का संसार कहा जाने वाला यह देश कई मामलों में अनोखा है। यह उत्तर में चीन से तथा पूर्व पश्चिम और दक्षिण में भारत से घिरा है। पश्चिम में नेपाल से इसे सिक्किम अलग करता है- तो बांग्लादेश से अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल। चीन की ओर तिब्बत से इसका सम्बन्ध पूरी तरह से कटा हुआ है (हालाँकि सांस्कृतिक और धर्मिक रूप से यह तिब्बत से काफी निकट है)। भूटान की राजधानी थिम्फू है जो इसका सबसे बड़ा शहर भी है। यहाँ की मुद्रा नोंगत्रूम तथा भाषा जोंगखा है। तीरंदाजी यहाँ का लोकप्रिय खेल है और इसकी प्रतियोगिता का आयोजन किसी उत्सव की भांति किया जाता है। विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जहाँ बौद्ध धर्म की वज्रायन शाखा का पालन होता है। अभी हाल तक यहाँ विदेशी यात्रियों के पर्यटन की अनुमति नहीं थी। [और अभी भी विदेशी पर्यटकों (भारत, बांग्लादेश और म्यांमार को छोड़ कर ) को प्रतिदिन के हिसाब से 250 $ पहले से जमा कराने होते हैं जिसमे ट्रेवल एजेंट का लगभग सारा खर्च आ जाता है।] । यहाँ के लोग अपने देश को द्रुक- यूल ( वज्र- ड्रैगन का देश ) के नाम से जानते हैं।

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इतिहास गवाह रहा है की किसी भी देश में जनतंत्र विद्रोह के कई चरणों के बाद ही स्थापित हो सका है। हर जगह ऐसे विद्रोह को आरम्भ में क्रूरता से दबाने की कोशिश की गयी है - क्रूरता का स्तर अलग अलग हो सकता है। किन्तु अपने इस पडोसी मुल्क में राजा ने बिना किसी विद्रोह के खुद अपनी मर्जी से अपने पद से ऊपर संविधान को स्थान दिया। देश की सरकार सन 2008 में राजशाही से एकात्मक संसदीय संवैधानिक राजशाही में रूपांतरित हो गयी, जो मोटे तौर पर इंग्लैंड के सामान है।  इसके तहत प्रधानमंत्री तथा संसदीय सभा के अन्य सदस्यों का चयन जनता आम चुनाव के द्वारा करती है। इस संसदीय सभा को 2 तिहाई बहुमत से राजा को भी पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त है।

लोकतंत्रीकरण की यह प्रक्रिया 1953 ई. में जिग्मे दोरजी वांगचुक के समय ही आरम्भ हो गयी थी जब उन्होने राष्ट्रीय सभा का गठन किया था जिसमे हर जिले के जन प्रतिनिधि होते थे जो कानून निर्माण प्रक्रिया में राजा को सलाह दे सकते थे। उन्होंने ही को विकास को मापने का पैमाना धन सम्पदा की  जगह समृध्दि और खुशहाली को माना था। उन्होंने 1971 UN  में भूटान के प्रवेश के उपलक्ष्य में दिए गए अपने भाषण में भी इसपे जोर डाला था। GDP (gross domestic product ) Vs GNH (gross national happiness) का मामला वहीँ से आरम्भ हुआ। उनके उत्तराधिकारी जिग्मे सिग्वे वांगचुक के अनुसार सरकार का उत्तरदायित्व जनता की खुशहाली होनी चाहिए। जिसके चार मुख्य आधार हैं-

1. न्यायोचित समान सामाजिक- आर्थिक विकास।
2. सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत का संरक्षण और उन्नयन।
3. पर्यावरण संरक्षण।
4. कुशल लोकहितकारी प्रशासन।




बिजिनेस वीक द्वारा 2006 में कराये गए सर्वे में इसे एशिया का सबसे खुशहाल देश बताया गया था। हम अपने स्तर पर सोंचे तो खुशहाली का मापक क्या हो सकता है? की लोग खुश हों। आशान्वित हों। धरती सस्य श्यामल हो। जल और वायु प्रदूषण से रहित हों। मौसम लिए स्वास्थ्यप्रद हो। सरकार प्रजा की ख़ुशी का ध्यान रखे। और सबसे बढ़कर लोग अपने उपलब्ध संसाधनों के अंदर जीना जानते हों। इस कसौटी पर देखें तो भूटान की वास्तव में खुशहाल है। धरती ऐसी सस्य श्यामला की काफी बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए हिमाच्छादित होते हुए भी सरकारी आंकड़ों के हिसाब से भूटान का 70% क्षेत्र वनाच्छादित है जिसमे से 60% क्षेत्र संरक्षित है। देश कृषि प्रधान है और मैदानी इलाकों में वर्षा प्रचूर मात्रा में होती है । अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग तरह के मौसम की प्रधानता है। अर्थात लगभग हर तरह का मौसम उपलब्ध है। जल और वायु तो स्वच्छ हैं ही । प्लास्टिक पर पूरी तरह रोक है। वहां के लोग इसे एक पवित्र पुण्य भूमि मानते हैं। उनका मानना है की यह भगवान बुद्ध की भूमि है और भगवान इसके कण कण में स्वयं विद्यमान हैं। इसी कारण वे आपस में भी बहुत शालीनता से बातचीत करते हैं। और आसपास की शांति को भंग करने का कम से कम प्रयत्न करते हैं *। यहाँ के लोग राजा को अपने पिता की भांति मानते हैं और राजा भी अपनी प्रजा की खुशहाली के हर संभव प्रयास करता है। स्वास्थ्य और शिक्षा सबके के लिए मुफ़्त है। राजा द्वारा उच्च शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता है। राजकोष द्वारा होनहार छात्रों के भारत या ब्रिटेन के अच्छे संस्थानों में पढ़ाई की भी व्यवस्था की जाती है। हर गांव तक पीने के पानी, सड़क, बिजली की पहुँच है। तो ऐसे ही नहीं भूटान को कहा जाता है "The last sangrila".

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* यहाँ से



Images : courtsy google
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