जिंदगी के नशे में \
कुछ गाता हूँ \
गुनगुनाता हूँ \
कभी चीखता चिल्लाता हूँ \
रोता रुलाता हूँ \
तो कभी हँसता हंसाता हूँ \
या कभी चादर ओढ़ कर \
चुप-चाप सो जाता हूँ…
एक झीनी सी दीवार
जिसके आर पार
कितने भरे हुए हम दोनों ;
बस मौन-मुग्ध इंतजार
एक हल्के से हवा के झोंके का
जो उस दीवार को ढ़हा दे
और छलका कर दोनों गागर का जल
हमारे अहम्- वहम् सबकुछ
उसमें बहा दे ।