Thursday, 9 April 2015

तुम नहीं हो !



तुम नहीं हो !

गुलदान कोने में सहमा सा पड़ा है।
मुझसे पूछना चाहता है -
कब आओगे ?
कब जाओगे ?
पर पूछता नहीं।

तरस गया है- जिन्दा फूलों को।
ये प्लास्टिक के फूल-
न खिलते हैं ,
न मुरझाते हैं ,
जैसे के तैसे
समय काट रहे हैं।

समय ही तो काट रहे हैं-
ये गुलदान,
ये दरों-दीवार,
और मैं भी
जैसे के तैसे  .…





Images : courtsy google
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