Saturday, 23 February 2013

झील और पत्थर


अभी-अभी सुनीता रूम से बाहर गई थी की मैं रूम में आया, देखा टेबल पर एक दो पुरानी  कॉपियाँ पड़ी थी।  एक कॉपी से एक फ़ोटो बाहर झाँक रहा  था।  मैंने फ़ोटो  निकालने के लिए कॉपी खोला तो पहचाने से अक्षरों में कुछ लिखा था .....


दो पल की मुलाकात,
और
वो मुझमे उतर गया
झील में गिरे
किसी पत्थर की तरह ;

फैलते रहे मेरे वजूद पर
उसकी यादों के घेरे
जैसे उस झील में तरंग;

और उस पेज के साथ रखी थी मेरी वही फ़ोटो जो मैंने सगाई से पहले उसके छोटे भाई के हाँथों उसे भिजवाई थी।  मैं उन पुरानी यादों में खोने ही वाला था की तभी सुनीता कुछ बड़बड़ाती हुई अन्दर आयी-
 "जहाँ देखो मुझे ही सारी तैयारी करनी पड़ती है, ये भी नहीं की आज ही ऑफिस से थोड़ा जल्दी आ जाते ।पता  नहीं उन्हें आज का दिन याद भी है या नहीं "

अचानक मुझे देख कर वो चौंक गयी। फिर मुझे लगा वो कुछ सिमटती सी जा रही है।  मैं गेस नहीं कर पा रहा था की वो नाराज है या शरमा रही है....         




This poem may be considered as my hindi rendering of a post by @iBeingMe
circles

Thursday, 21 February 2013

मंच से तब लौट आना


मैं चला अब
बांध के सामान अपना ;
आप आओ
मंच पर मेले लगाओ ।

आप की महफ़िल
बड़ी गुलज़ार होगी ;
है दुआ कि
आप जग में जगमगाओ ।

वक़्त आने पर मगर जो
दर्द की फ़सलें उगेंगी
काट कर उनको
कमर से बांध लेना ;
(यह खजाना साथ रखना
पर किसी को मत दिखाना )।

वक़्त जब फिर आपको
नेपथ्य के पीछे पुकारे ;
साथ ले उस दर्द को
मंच से तब लौट आना ।



*          *          *



My time's over
Come on the stage
It's whole yours.

Yours' will be

The glorious performance.
Spreading ageless delight
To each and every place.

At times
Waves of sorrow
will engulf your joy;
Let it not
Hold your way.
Unfold it and fold it
To put safely
Within your heart
Concealing from others.

When time
Takes it own tern
To call you off the stage
This parcel
Will your only belonging
And true treasure.




Images : courtsy google
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