दो पल की मुलाकात,
और
वो मुझमे उतर गया
झील में गिरे
किसी पत्थर की तरह ;
फैलते रहे मेरे वजूद पर
उसकी यादों के घेरे
जैसे उस झील में तरंग;
और उस पेज के साथ रखी थी मेरी वही फ़ोटो जो मैंने सगाई से पहले उसके छोटे भाई के हाँथों उसे भिजवाई थी। मैं उन पुरानी यादों में खोने ही वाला था की तभी सुनीता कुछ बड़बड़ाती हुई अन्दर आयी-
"जहाँ देखो मुझे ही सारी तैयारी करनी पड़ती है, ये भी नहीं की आज ही ऑफिस से थोड़ा जल्दी आ जाते ।पता नहीं उन्हें आज का दिन याद भी है या नहीं "
अचानक मुझे देख कर वो चौंक गयी। फिर मुझे लगा वो कुछ सिमटती सी जा रही है। मैं गेस नहीं कर पा रहा था की वो नाराज है या शरमा रही है....
This poem may be considered as my hindi rendering of a post by @iBeingMe
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