बीच चौराहे पे पड़ी थी उसकी लाश
जो चीख़ -चीख़ बताए जा रही थी हत्यारों के नाम।
लोगों में आक्रोश था;
चारों ओर भयानक शोर था;
कोई नहीं सुन पा रहा था वो भयानक चीख
जो बेतहासा भागदौड़ में दब गई थी।
चप्पे-चप्पे में दहशत और वहशत फैलता जा रहा था
और लाशों की संख्या बढ़ रही थी
उनकी भी वही चीख-
उसी तरह आक्रोश के बुल्डोज़रों तले रौंदी गयी।
यह बुल्डोज़र पुरे शहर को रौंदता रहा
गली- गली , चप्पे - चप्पे
कोई घर अछूता न बचा
हजारों लाशें अब एक साथ चीख रही थीं -
हमें किसी हिन्दू या मुसलमान ने नहीं मारा,
किसी क्षेत्र विशेष के लोगों ने,
या भाषा विशेष, जाति विशेष,
या किसी वाद के समर्थकों ने हमें नहीं मारा ,
हमारी हत्या कराती हुई जो हुजूम गुजरी
उसमे वही गिने चुने चेहरे थे-
कहीं डर, कहीं स्वार्थ,
कहीं ईर्ष्या, तो कहीं लोभ,
कही घमंड और मदान्धता
और कहीं बदले की कुत्सित भावना ,
इनसे से मिलते-जुलते और भी कुछ चेहरे।
पर अब सुनने वाला कोई न बचा था
और बुल्डोज़र बढ़ चुका था किसी दूसरे शहर की ओर।
हिंसा का बुल्डोज़र
जो चीख़ -चीख़ बताए जा रही थी हत्यारों के नाम।
लोगों में आक्रोश था;
चारों ओर भयानक शोर था;
कोई नहीं सुन पा रहा था वो भयानक चीख
जो बेतहासा भागदौड़ में दब गई थी।
चप्पे-चप्पे में दहशत और वहशत फैलता जा रहा था
और लाशों की संख्या बढ़ रही थी
उनकी भी वही चीख-
उसी तरह आक्रोश के बुल्डोज़रों तले रौंदी गयी।
यह बुल्डोज़र पुरे शहर को रौंदता रहा
गली- गली , चप्पे - चप्पे
कोई घर अछूता न बचा
हजारों लाशें अब एक साथ चीख रही थीं -
हमें किसी हिन्दू या मुसलमान ने नहीं मारा,
किसी क्षेत्र विशेष के लोगों ने,
या भाषा विशेष, जाति विशेष,
या किसी वाद के समर्थकों ने हमें नहीं मारा ,
हमारी हत्या कराती हुई जो हुजूम गुजरी
उसमे वही गिने चुने चेहरे थे-
कहीं डर, कहीं स्वार्थ,
कहीं ईर्ष्या, तो कहीं लोभ,
कही घमंड और मदान्धता
और कहीं बदले की कुत्सित भावना ,
इनसे से मिलते-जुलते और भी कुछ चेहरे।
पर अब सुनने वाला कोई न बचा था
और बुल्डोज़र बढ़ चुका था किसी दूसरे शहर की ओर।
हिंसा का बुल्डोज़र