रात :
पर मैं जी रहा हूँ निडर
जैसे कमल
जैसे पंथी
जैसे सूर्य
क्योंकि
कल भी हम खिलेंगे
हम चलेंगे
हम उगेंगे
और वो सब साथ होंगे
आज जिनको रात ने भटक दिया है।
-धर्मवीर भारती
- गीता के सार सी मालूम होती हैं मुझे ये पंक्तियाँ । निराशा के क्षणों में ये पंक्तियाँ भाग्यवाद का विरोध किये बगैर उससे परे हो जाने का साहस देती है । हम निर्भीक हैं इसलिए नहीं की वक़्त सबकुछ ठीक कर देगा बल्कि इसलिए की हम हारे नहीं हैं हम अभी भी खिलने, चलने और उगने का माद्दा रखते हैं। रात्रि के विश्रान्ति के बाद जब हम फिर से तरो-ताजा होकर खिलेंगे, चलेंगे और उगेंगे तो हम अपनी हर खोयी हुयी उपलब्धियों को फिर से हासिल कर लेंगे।
...........................................................................
रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियाँ भी निराश होने की मनाही उसी तरह करतीं है जैसे William Wordsworth की ये पंक्तियाँ-
publish ebook with onlinegatha, get 85% Huge royalty,send Abstract today
ReplyDeleteFree Ebook Publisher India| Buy Online ISBN