एक छोटी सी चिड़िया
इस सुन्दर गुलजार में
आवाज देती है अपनों को
पर यहाँ और कौन है उसको सुनने वाला
उसके गीत.. या उसका विलाप
वो जहाँ भी है .. जिस भी मनोभूमि में;
गुलजार में या बीहड़ में
वह अकेली ही तो है
* * *
2.
वैसे भी गौरैयों पे कौन ध्यान देता है।
वो ना तो सेक्युलर हैं
ना तो राष्ट्रवादी
और ना ही
साम्यवादी
संख्या ही क्या है उनकी?
उसपर से उनका ध्रुवीकरण भी तो नहीं संभव
उनके लिये तो न्यायलय के भी दरवाजे बंद हैं
क्योंकि वो वोट नहीं देते- इसीलिए वो सवाल भी नहीं पूछ सकते।
सरकार तो उनकी है जिन्होंने वोट दिया।