ये कैसी लपलपाती आग है
जो जल रही है।
जिसके जद में खरगोश, चूहे, बिल्ली, आते हैं
और आते है घास, पतवार,
हिरन, बकरी, कुत्ते और सियार।
सब जल रहे हैं
उबल रहें हैं
और एक दूसरे को जला रहे हैं
झुलसा रहे हैं ।
किसी को एक चीटीं काट ले
तो जाग उठती है उसकी जलन
लपटें छोड़ता निकल पड़ता है
अपराधी की तलाश में
जलाने अपने जैसे किसी को
प्रतिशोध की आग में
वह नियंता सजा मुक़र्रर करता है
सजाये मौत बाटता फिरता है
अपने जैसे नाकारों के बीच।
पर हाथी और शेर
इस आग की चपेट में नहीं आते
वो तो इस आग की लपट पर
अपनी अपनी रोटिया और गोस्त सेंकतेे हैं।
Bahut Sundar
ReplyDeleteवाकई एक अच्छी रचना है, ऐसे ही लिखते रहिये !
ReplyDeleteहौसला-अफ़जाई के लिए आप सबों का आभार।
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