जिंदगी के नशे में \
कुछ गाता हूँ \
गुनगुनाता हूँ \
कभी चीखता चिल्लाता हूँ \
रोता रुलाता हूँ \
तो कभी हँसता हंसाता हूँ \
या कभी चादर ओढ़ कर \
चुप-चाप सो जाता हूँ…
Saturday, 10 October 2015
कविता ऐसी भी क्या? किस काम की ?
तुम्हारा कवित्व सोना है -
उछालो उसे- खड़ा और चमकदार
- ताकि दुनिया गुणे ।
उसे गुदरी में क्या छिपाना
की कोई पहचान न सके
कोई डिटेक्टर लगाना पड़े -
विद्वान्-पंडित बुलाने पड़े
उसके गुण धर्म समझने के लिए।
सोना - ऐसा भी क्या?
किस काम का?
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आपके विचार हमारा मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन करते हैं कृपया हमें इमसे वंचित न करें ।
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