Wednesday, 21 October 2015

रक्षक

बस बोलने भर से तुम रक्षक नहीं बन जाते
देश के इतिहास-भूगोल के
सभ्यता-संस्कृति के...

खुद को रक्षक मानते हो तो ये कुल्हारी?
क्या कहा?-
इस वाटिका की रक्षा के लिए ।
इसपे होने वाले हमले से लोहा लेने के लिए ।
बेडौल, बेतरतीब उग आये
झार-पतवार से निपटने के लिए ।
लेकिन मैंने तो तुम्हे अक्सर उन वट- पीपलों पे वार करते देखा है
जिनके छाँव तले
वाटिका पनपी है ।

नासमझों!
कुछ न समझ आये तो
कुल्हारी फ़ेंक दो
रक्षक होने का भाव छोड़ दो।
जब तक ये वट-पीपल हैं
चमकता सूरज है
धरती उर्वर है
वाटिका में पौधे उगते रहेंगे
नित नए-नए।





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Images : courtsy google
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